Monday, November 12, 2018

घुमड़ते बादल........



Shayri








ऐतबार......
तर्क ग़म-ओ-ख़ुशी से बेदिल ये फ़लसफ़े
हंसने रोने का भी इंकार करते हैं
सुना था कही दूर झुरमुट में अमराई में
कोई है जो कि हर शै से प्यार करते हैं
हंसते  रोते हर वक्त रक़्स-ओ-मौसिक़ी उन पर
हर चीज़ हर काम बेशुमार करते हैं
सुन के तज दी ये किताबें ये फलसफी हमने
दिल पे सिर्फ अपने ऐतबार करते हैं
हिज़रत का पल है ये नहीं कोई तन्हाई अब
उनको मालूम है वो इंतज़ार करते हैं


Shayri


तन्हाई......
दिल लबरेज़ है अश्क़ों से,
ख़ुश्क है आँखे मगर
उनका पैग़ाम भी आता नहीं
हम जिए तो चले जाते है
मयस्सर सी इस दुनिया में
ख्वा वैसे तो अब जिया जाता नहीं
दरिया पर्वत जंगल सेहरा शब ओ रात सब हैं तनहा
शिक़वे बहुत पर कहा जाता नहीं
साकी है चमन है मय है वजह है
और तसव्वुर भीगा
प्यासे होके भी अब तो पिया जाता ही नहीं
Shayri


वक़्त की संगदिली....
नज़र के सामने होकर भी
दिल से दूर लगते हो
शक-ओ-शुबहो के गहरे
नशे में चूर लगते हो
यही कुदरत है कि तुम हो
औ तुम्हारा बेवजह गुस्सा
संगदिल वक़्त के हाथों
बड़े मजबूर लगते हो
हमे तो इश्क़ है ज़ालिम
तुम्हारी बेवफाई से
कि जलते इस जहन्नुम में
तुम हमको हूर लगते हो

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