Friday, April 28, 2017

एक पत्र भगवान को जो वो पढ़ेंगे? Letter to God


परमपिता परमेश्वर आपको एक पत्र जो मैं लिखना नहीं जानता
परमपिता आप सारे संसार जो दिखाई देता है और जो मुझ को समझ में आता है के इतर भी बहुत कुछ है सब के आदि कारण, पोषणकर्ता और संहारक है ऐसा सभी धर्म ग्रंथ और बुजुर्ग कहते है। कहा जाता है आप सर्वत्र व्यापक और सभी काल में सामान रूप से बिना किसी परिवर्तन के हमेशा से हमेशा के लिए सर्वशक्तिमान होकर रहे हो और रहोगे और आपके समकक्ष कोई और दूसरा होने की कोई कल्पना की भी कल्पना नहीं की गयी है। आप सब कुछ हो और सब कुछ आप मैं है। और आप को परिभाषित करना असंभव है इसके चलते आप का कोई भी पूरा पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता और आप चाहो तो ही कोई आपको जानने की चेष्ठा भी कर पाता है। कुल मिला के लब्बोलुआब सौ बातो की एक बात आप सब के मालिक हो यही समझ पाया हूं और यही समझ रख कर आप से मुखातिब हूं।
  हाँ तो भगवन आप अगर सर्वशक्तिमान हो और आपके समकक्ष कोई दूसरा है नहीं तो जाहिर है कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है कोई आप का गुणगान करे भी तो आपके अलावा कोई और सुनने वाला  होगा नहीं और गुणगान सुन के आपके अहम को कोई तुष्टि शायद ही मिलती होगी क्योंकि कोई भी आपको पूरा जानता नहीं है सो प्रशंसा या गुंणवाद क्या खाक करेगा? मेरी समझ में शायद ही आपका कोई अहम या ईगो जैसा कुछ होगा जिसके लिए आप गुणगान पर ध्यान देते हों ! सही है न ? तो फिर ये सारे ग्रँथ आपके गीतों से भरे पड़े है आप कुछ करते क्यों नहीं? या फिर आपकी मर्ज़ी से ही ये ग्रन्थ लिखे गये हैं ? कदाचित यही है ? है न ?  मतलब आप ही चाहते है कि लोग आप के गीत गाए और फिर आप उनको सुनो भी नहीं कुल मिला कर सीधा सा इग्नोर कर दो जैसा कोई धन्ना सेठ मांगने वाले भिखारी को करता है फिर बहुत मिन्नत करने पर अठन्नी दे डालता है, यही न? आप भी शायद इसी से खुश होते होंगे और देते भी कुछ नहीं क्योंकि कर्म औऱ पुनर्जन्म का सिद्धांत भी आपकी ही उपज है मतलब हर चीज़ आपसे है तो ये भी आप ही का है, यही है न? 
    चलो कोई बात नहीं आप समर्थ हैं कुछ भी करे कौन कुछ कह सकता है और कहे तो सुनता कौन है? और तो और किसी भ्र्ष्टाचार में आकंठ डूबी सरकार की तरह बड़ा वाला घोटाला भी आप करने में माहिर हो , आप के कानून आप ही की सज़ाए वाह वाह! मेरे मालिक आप से कौन विद्रोह कर सकेगा भला आप चाहे जो करें फिर ये धर्म ग्रँथ किसलिए? ये सब प्रचारतंत्र किस ख़ुशी में? आप कहे तो मान लिया कि कर्म का फल होता है और इसी जन्म के बाद और भी जन्म है जिसमे अभी का पकाया कर्म फल यदि बच गया तो खाना पड़ेगा और अगर कोई फल नहीं रहा तो आप की जीवात्मा का ये वर्शन लेप्स हो जायेगा जीव मतलब जीव नहीं रहेगा पता नहीं बिचारा फिर नहीं रहेगा वजूद ख़त्म या ऐसे भी समझ सकते है कि खिलौना अब काम का नहीं रहा भगवन को कर्म करने वाले जीव पसंद है कर्म भी वो वाले जो फल का बंधन वाले हों ! मतलब कुछ भी कर लो कर्म छोड़ सकते नहीं और छोड़ने की एक ही विधि है कि कर्म का कर्ता या तो परमात्मा का विधान को मानो या  उस भगवन को ही मानो फिर कर्म से छूटे तो प्रसाद में वजूद ख़त्म? चलो खुश करने को यह भी कह दिया की वजूद खत्म नहीं हुआ आप खुद स्वरुप को प्राप्त हो गए और खुद ही परमात्मा बन गए। आगे फिर? आगे का नहीं बताया ! क्यों? गोया कोई मैट्रिक्स मूवी सीरीज हो । अरे हमको परमात्मा बन के क्या करना है ? सीधे सीधे इंसान रहने देते नहीं पहले सुखी करेंगे तो जीव बापड़ा मगन होगा थोड़ा समय बीता नहीं दुखी कर देंगे फिर वो आत्मा के बारे में सोचेगा फिर?  फिर क्या उसको वहीँ मोक्ष का ऑफर । जब मोक्ष लेना इतना जरुरी है तो राशनकार्ड की तरह दे दो न सबको क्या प्रॉब्लम है? भगवन आप पागलल हो सचमुच !
   आपको मालूम है कि सब कोई सोचते तो होंगे और बोलेंगे भी जितनी बुद्धि है उतने ही बोलेंगे पर परेशान तो करेंगे ही तो खुद जा कर छुप गए अनंत में असीम में से आवाज़ दे देते हो। अपनी सुनाते हो रेडियो की तरह सुनते नहीं हो फ़ोन की तरह! अभी जब सुनते ही नहीं तो पढ़ते क्या होंगे ? पढोगे भी कैसे ये पत्र आप को कोई पहुचायेगा तो भला कैसे? इतना सब कुछ लिखा सब व्यर्थ हुआ इस सब के लिए धन्यवाद मेरे जीवन की तरह ये पत्र भी व्यर्थ हुआ , बहुत दुःख आया है जीवन में और आप के कानून की तरह सुख दुख से छूटने का सोचा है खिलौना ख़राब होने को है अब क्या करूँ? आप के कोई दरबान कोई रसोईया या माली कोई एम्प्लाइज तो होंगे उन्ही की पहचान बता दो यार कभी पढ़ लो मेरी चिठ्ठी प्लीज! हालाँकि पता है मेरे अलावा ये चिठ्ठी शायद ही कोई पढ़ेगा ।
26 फ़रवरी 2017                                       आपके अंदर से ही
                                                                    एक जीवात्मा

घुमड़ते बादल........

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