Saturday, September 23, 2017

भारतीय ज्योतिष Indian Astrology




ज्योतिष शास्त्र : सामान्य परिचय
ज्योतिष का नाम सुनते ही हमारे ध्यान में एक पुराने से लाल कपड़े में बंधे पंचांग लिए कोई वयोवृद्ध पंडित जी जो अधिकतर ब्राह्मण समुदाय से संबंध रखते है और न सिर्फ भविष्य दर्शन कराते है अपितु, पौराणिक कथाओं के वाचन और धार्मिक रीति रिवाजों के मूहुर्त बताने के साथ ही पुरोहित के रूप में उन रीतियों, अनुष्ठानों को सम्पन्न भी बनाते हैं का स्मरण हो आता है। वैसे पिछले 20-25 साल से ज्योतिष जाति विशेष से निकल कर सामान्य जन समुदाय के ज्योतिषियों द्वारा भी समृद्ध किया  जाने लगा है और अब अधुनातन ज्योतिषी वातानुकूलित कक्षो में लैपटॉप आदि से भविष्य बताने लगे हैं। कुल मिला कर जनता को ज्योतिष की आवश्यकता है और आज के वातावरण के अनुकूल इस विद्या का बड़े स्तर पर व्यवसायीकरण हो चुका है । युवा वर्ग ज्योतिष के बारे में जानने को उत्सुक है। उत्सुकता प्रारम्भ होती है स्वयम का जन्म पत्र कैसा है इस बारे मे और फिर जब किसी विज्ञ दैवज्ञ के पास हम जाते है उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर इस ज्ञान के लिए और जिज्ञासा बढ़ जाती है। साथ ही आजीविका के लिए भी लोग इस ज्ञान की तरफ आकर्षित हो रहे है।



    अब प्रश्न यही होता है कि ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन के लिए क्या किया जाए? सौभाग्य से भारतवर्ष में ज्योतिष कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है औरभी बहुत से निजी संस्थान है जो ज्योतिष सीखने में सहायता करते हैं। कोई भी वँहा से ज्योतिष सीख सकता है। और अधिक से अधिक अनुभव को बढ़ा कर विद्या में निष्णात हो सकता है।क्योंकि ज्योतिष एक वेदांग है (वेदांग: चारो वेदों के ज्ञान को समझने के लिए छः वेदांग निश्चित किये गए है जो कि क्रमशः शिक्षा, ज्योतिष, छंद, व्याकरण, निरुक्त और कल्प हैं) और इतने प्राचीन ज्ञान को प्राप्त करने के लिए हमें उस ज्ञान के योग्य बनना होगा । यदि हम इस ज्ञान के पात्र बने बिना इस ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन और उपयोग करने लगे तो स्वयम और अन्य जीवों का अहित ही करेंगे, यह बंदर के हाथ उस्तरा देने के समान हो जाएगा।
ज्योतिष शास्त्र में लगभग सभी शास्त्रों का समावेश है

         यदि यह कहा जाए कि ज्योतिष शास्त्र में सभी शास्त्रो का निचोड़ है तो अतिशयोक्ति नही होगी, अपितु यही सत्य है। आदि काल से मनुष्य आकाश की और निहारता रहा है विभिन्न संस्कृतियों में सूर्य, चंद्रमा और तारागणों आदि को लेकर कथाये कही और सुनी जाती है। इन आकाशीय पिंडों का मानव जीवन पर हर क्षण प्रभाव रहता है । सूर्य से दिन रात और चंद्रमा से ज्वार भाटा के कारण हर जीवित प्राणी प्रभावित होता है। ज्योतिष शास्त्र के लिए आवश्यक गणना के लिए रेखागणित, बीजगणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, भूगोल विज्ञान , अंतरिक्ष विज्ञान, दर्शनशास्त्र, इतिहास, शरीर विज्ञान, भौतिकी, भाषाविज्ञान और आधुनिक काल में तो कम्प्यूटर विज्ञान भी अनिवार्य रूप से आवश्यक होता है। और यदि कहा जाए कि कोई ज्योतिषी पूर्ण रूपेण ज्योतिष को जान पाया है तब ये बात बहुत असंभव सी ही होगी क्योंकि इतना विशद ज्ञान जो सभी तरह के ज्ञान का समावेश है को एक ही व्यक्ति को अपने जीवन काल मे प्राप्त करना और उसका विद्वान बन जाना अत्यंत दुष्कर ही प्रतीत होता है। हम सिर्फ ज्योतिष शास्त्र के आजीवन साधक ही रह सकते है, ज्योतिष शास्त्र को सीखना एक सतत प्रक्रिया है। जितना सीखे उतना ही कम लगता है। और यही कारण है कि आधुनिक काल मे बड़े बड़े नाम ऐसे भी आये है जिन्होंने ज्योतिष में नए अन्वेषण किये और विधि का दर्शन करवाया। कृष्णमूर्ती, के.ऐन. राव, बापूदेव शास्त्री, और पंडित विष्णुकांत झा ऐसे धुरंधर ज्योतिषी रहे है जिन्होंने ज्योतिष की सच्ची सेवा की है और नए सिद्धांत ज्योतिष की रचना की है।
    

  भारत देश के बड़े बड़े वैज्ञानिक, आयुर्वेद चिकित्सक, अन्वेषणकर्ता इतिहासकार और राजनीतिज्ञ ज्योतिष शास्त्र को जानने वाले रहे है और उनकी मुख्य उपलब्धियों में ज्योतिष ज्ञान का बड़ा योगदान रहा है।
  ज्योतिष को वेदानां चक्षु मतलब वेद के ज्ञान का दिग्दर्शन कराने वाले नेत्र कहा गया है। और वेद केवल धार्मिक ग्रंथ नही है गणित विज्ञान और भुगोल जैसे कई विषय ज्ञान के लिए मानव जाति वेदों की ऋणी है। और ज्योतिष उसी वेद विद्या का मुख्य अंग है
    यथा शिखा मयूराणां,  नागानां मणयो यथा

    तद्वेदांग शास्त्राणां  ज्योतिषं  शास्त्रमुत्तमम
जिस प्रकार नाग की मणि और मयूर पक्षी की कलगी सब अंगों में सबसे ऊपर अर्थात सिर  धारण की जाती है उसी तरह षड वेदांग में ज्योतिष शास्त्र सर्वोपरि है। (सूर्यसिद्धांत )
ज्योतिष कला है अथवा विज्ञान
?
ज्योतिष विद्या के बारे में जन समुदाय के मन मे एक भारी दुविधा है, भारतीय परम्पराओं में अटूट विश्वास रखने वाले सामान्य जन ज्योतिष को बिना किसी पड़ताल के विज्ञान  कह सकते हैं परंतु ज्योतिष शास्त्र के सच्चे साधक हमेशा यही चाहते हैं कि ज्योतिष आस्था का विषय नही होना चाहिए, ज्योतिष भी विज्ञान की अन्य विधाओं की भांति तर्क और प्रयोग की कसौटी से परख कर सिद्धांत का प्रतिपादन करे। परंतु यह भी सत्य है कि ज्योतिष को कैसे किसी और सिद्धांत से प्रमाणित किया जाए? जो भी हो तर्क से ज्योतिष सिद्धांत को समझ सकना ज्यादा उपयुक्त होता है ।    वस्तुतः फलित ज्योतिष में बहुत ही निष्णात ज्योतिषी ही प्रयोग कर के बतला सकते है। इसका क्या अर्थ हुआ? देखे तो सीधा सीधा समझ मे आता है कि ज्योतिष को समझ कर उसका सदुपयोग करना बहुत साधना का काम है । और ज्योतिष के विषय मे यही आर्य सत्य है
        "यदि कुछ त्रुटि है तो ज्योतिषी की ही त्रुटि है ज्योतिष विद्या कभी गलत नही हो सकती"
          ज्योतिष को पूर्णतः विज्ञान कह देना ज्योतिष विद्या को सीमित कर देने के जैसा है , जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि ज्योतिष एक नही अपितु लगभग सम्पूर्ण विद्याओं का सार है तो अन्य विद्याओं की तरह ज्योतिष को एक विद्या माना जाना असंगत और अयुक्तिकर ही कहलायेगा। ज्योतिष में कला और विज्ञान दोनो का समावेश है। यह कला भी है विज्ञान भी है और ज्योतिष चक्षु होकर दर्शन भी है ।
           जब कला समृद्ध होकर अपने उच्चतम शिखर पर पहुंच जाती है तब वह स्थापित सिद्धांत बन जाती है और विज्ञान बन जाती है, और वही विज्ञान जब अपने अधिकतम सामर्थ्य के साथ अंतिम लक्ष्य पर पहुंच जाता है तब सफलता के साथ विज्ञान के सिद्धांत मानव को कला के रूप में दिख पड़ते है। कला और विज्ञान में कोई भेद नही है बस समयांतराल में या संक्रमण काल मे दोनी भिन्न दिखाई पड़ते हैं। ज्योतिष एक सिद्धांत गणित विज्ञान पर आधारित फलित के द्वारा मानव जीवन को जिस प्रकार सरल बनाती है वही कला है।
   ज्योतिष को हम क्यों मानें?
            ज्योतिष कला हो विज्ञान हो या कोई दर्शन हो सामान्य जन को क्या आ पड़ी कि वो ज्योतिष को माने? बहुत ही तर्क संगत प्रश्न है, और प्रत्येक मनुष्य को इस प्रश्न के पीछे का मंतव्य समझना चाहिए। ज्योतिष जिस प्रकार व्यापार बन चुका है और विभिन्न योग दोष का भय दिखा कर जो धनार्जन का व्यवसाय चल रहा है वही असल कारण है कि हम ऐसा प्रश्न करते हैं। परंतु हम को इतना ही समझना है कि यदि डॉक्टर बीमारी का सही निदान न करके अन्य उपचार कर देता है और रोगी को हुई हानि का उत्तरदायी डॉक्टर ही होगा, चिकित्साशास्त्र को दोषी नही सिद्ध किया जा सकता है। अतः ज्योतिषी को अपनी जिम्मेदारी समझ कर आगंतुक को परामर्श करना चाहिए ।
      अब प्रश्न का उत्तर भी मिलना चाहिए, कि ज्योतिष को क्यों मानें? तो प्रत्युत्तर यह होगा कि ज्योतिष को क्यों न मानें? देखे हम अपने सारे उत्सव को मनाते हैं स्कूलों दफ्तरों का समय ऋतु बदलने पर बदल डालते हैं क्यों? वो इसलिए कि हम एक कलेंडर का पालन करते हैं, जिसके अनुसार उत्सव चाहे धार्मिक हो या सरकारी मनाने का प्रचलन होता है। अब हिन्दू मत के उत्सव को छोड़ भी दें तो नववर्ष को किस कारण मनाया जाता है? सभी लोग बोल देंगे कि नया साल शुरू होने के कारण नव वर्ष मानते है। अब प्रश्न यह होगा कि नववर्ष का वैज्ञानिक कारण क्या है? उत्तर होगा कि धरती के सूर्य के परिभ्रमण का एक वृत्त 365 दिन में पूरा हुआ अतः नववर्ष को मानना पड़ेगा। पर प्रश्न तो यह है कि एक गोलाकार परिभ्रमण पथ पर कहां से प्रारंभ माना जाए ? इसका कोई जवाब नही है।  कोई जवाब हो भी नही सकता वैज्ञानिक इस बात को जानते है कि पृथ्वी सूर्य के परिभ्रमण में जो समय लगाती है वह स्थिर नही है जिस अयन पर पृथ्वी का परिभ्रमण है वह भी बदलता रहता है। इसी कारण प्राचीन ज्योतिष विज्ञानियों ने नक्षत्र मंडल को आधार मान कर ज्योतिष शास्त्र की रचना की है, मात्र सूर्य या मात्र चंद्रमा की गति से नही । आज भी दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को ही आती है और  श्रीकृष्णजन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र पर ही आती है। मुस्लिम मुहर्रम का महीना तीन साल में सर्दी गर्मी और बरसात तीनो ऋतुओं में घूम जाता है। जीसस का जन्म दिवस मार्च में होता हुआ दिसंबर तक दस महीने के वर्ष से होता हुआ बारह माह के ईसवी वर्ष तक कैसे पहुंच गया किसी को शायद पता भी नही। यदि कोई ज्योतिष को द्वेष से और घृणा की वजह से नही मानता है तो उसे कोई भी उत्सव जो ज्योतिषीय पंचांग पर आधारित है नही मनाने चाहिए और अपने कार्यालय खुले रख कर काम करना चाहिए। जन्मदिन का उत्सव भी नही मनाना चाहिए क्योंकि सौर वर्ष भी शुद्धतम नही है। और तो और बहुत से लोगो को यह पूंछते हुए भी देखा है कि "आप ज्योतिष में मानते है क्या?" उत्तर में यही सूझता है कि श्रीमान ज्योतिष कोई भूत है क्या? ज्योतिष एक विज्ञान है यह कोई भूत प्रेत नही है कि जिसको न मानने से जीवन पर कोई प्रभाव न पड़े।ज्योतिष में नवीन वेध और शोध की बहुत आवश्यकता है। अधिक से अधिक वेधन और शोधन से ही ज्योतिष का वैभव सामने आ पायेगा।







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