Tuesday, March 8, 2016

चाणक्य का स्त्री विषयक ज्ञान Chanakya ka striyon k sambandh me gyan

चाणक्य काका के घर से मिली पाण्डुलिपि
विष्णुगुप्त चाणक्य कितने ज्ञानवान और चतुर थे यह किसी से छिपा नहीं है, चाणक्य को उनसे जलन रखने वालो से बड़ा खतरा था यह बात उन्हें पता चल गयी थी सो उन्होंने अपना सारा लिखित ज्ञान एक पुस्तक के रूप में जन साधारण के लिए लिख छोड़ा था| कुछ पुस्तक  आदि का नाम हमे पता है यथा चाणक्य नीति, अर्थशास्त्र आदि परंतु कुछ कार्य चाणक्य काका के अप्रकाशित रह गए बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है परंतु यह सच है की मगध के प्रधानमंत्री को अपनी पुस्तक के लिए प्रकाशक नहीं मिला, अब आप कहेंगे की बाकी की दो पुस्तक तो छप गयी फिर इसमें क्या समस्या  आ  गयी? तो पाठकवृंद के सामान्य ज्ञान के लिए कुछ शोध कार्य लेखक ने किया जो बताना चाहूँगा वो बात ऐसी है की वह पुस्तक लिखने से लेकर प्रकाशन तक में कितने रोड़े आये उतने तो नंदवंश के सर्वनाश में भी नहीं आये|
                अब यह  बात तो सर्वविदित है की चाणक्य काका कोई काकी वाकी के चक्कर में नहीं पड़े नहीं और वो समझदार भी थे सो इस विषय में लिखना चाहते थे की विवाह क्यों करे और क्यों न करे क्या लाभ हानि होंगे उनको पता थे सो उन्होंने अपने एक मित्र ऊंष्ट्रदन्त से यह सब बात कह डाली, ऊंष्ट्रदन्त  काका ने विवाह किया था सो सारा अनुभव अपने मित्र मतलब अपन के चाणक्य काका को कह डाला  चाणक्य काका ने सारा अनुभव एक पुस्तक के रूप में लिख डाला लेकिन महिला आयोग की सेंसरशिप  और गैर सरकारी संगठनो के विरोध के चलते प्रकाशीत नहीं करा पाये और सारा अमूल्य ज्ञान पांडुलिपी में ही लिखा रह गया , आप सब के प्रयोजनार्थ बड़ी हिम्मत के साथ ये पाण्डुलिपि आप सभी के सन्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसके लिए सेकड़ो साल ये पाण्डुलिपि प्रतीक्षा कर रही थी| मेरे पास किसी तरह का कोई प्रकाशन अधिकार तो नहीं है और न ही चाणक्य काका आज रॉयल्टी लेने को इस धरा धाम पर प्रस्तुत हैं परंतु सूचना क्रांति के इस युग में ज्ञान को जितना ज्यादा फैलाया जा सकता है वैसा किसी दूसरे युग में सम्भव नहीं हो सकता था, अस्तु |
प्रस्तुत है चाणक्य काका का अमूल्य ग्रन्थ
                          सखी वा भार्या रिपु नराणाम्
भगवन श्री नारायण को प्रणाम करते हुए जो की अपने एक अवतार में स्त्री के कारन  वन को भटके और अन्य अवतार में युद्ध के सफाक्षी बने एवम् और भी कई अवतारो में स्त्री के कारन दुखी होकर पुनः अपने धाम को पधार गए उन्ही के नाम का आश्रय लेकर ये विष्णुगुप्त इस ग्रन्थ का प्रारम्भ करता है
   स्त्री माता के रूप में तो वंदनीय सदैव रहेगी  जैसे  माता यशोदा माता कौशल्या और माता अंजनी ग्रन्थ में केवल जीवनसाथी के रूप में स्त्री के गुण दोष पर प्रकाश डाला जायेगा
जब सृष्टि का आरम्भ हुआ तब से लेकर आज तक स्त्री मनुष्य जीवन में सबसे ज्यादा  समय लेती आई है, आज हम  नारियो  को लेकर अब तक बने सारे नियमो पर विचार करेंगें
        सखी वा भार्या रिपु नराणाम् , मार्जारी सृदृशम् कुर्वन्  क्रियाणाम ।
       भवनस्य चिंता महतीम् करोति , कूपे पतित्त्वा स्वामी  गृहाणाम् ।।
शब्दार्थ: पत्नी हो या प्रेमिका वस्तुतः पुरुष की शत्रु ही होती हैँ, घर में रहने वाली बिल्ली की तरह स्त्रियां भवन की चिंता  में आतुर रहती है चाहे गृहस्वामी कुएं में गिर जाये
भावार्थ: स्त्री जाति केवल भौतिक सुख सुविधा की प्रेमी होती हैं, उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता है कि उनका पति या प्रेमी किस तरह उनको मौज़ करवा रहा है वो स्वयं किस हाल में है बिल्ली जैसे जानवर की तरह आराम में असुविधा होते ही गुर्रा पड़ती हैं, स्त्रियां इस बात का दिखावा करती  हैं कि वे अपने पति की बहुत चिंता करती है वस्तुतः ऐसा नहीं होता वे तो करवा चौथ का व्रत भी दुनिया ताना न मारे इसलिए रखती हैं, अगर वो पति की चिंता करती तो पति जैसा है उसे स्वीकार कर लेती परन्तु बजाय ऐसा करने के उसे बदल डालने के लिए बहुत परिश्रम कर रहे पति को खरी खोटी सुनाती रहती है
               सा दृश्यति सा हृष्यति , सा खादति सा पिबति ।
             सः जुष्यति  सम  बलीवर्द: , सा  कथयति  चेष्ठा कुरु  ।।
शब्दार्थ: वो(स्त्री) देखती है वो प्रसन्न होती है, वो खाती पीती है,  वह(पुरुष) बैल की तरह जुता रहता है वो फिर भी कहती है और चेष्ठा करते रहो
भावार्थ: अपनी सुख सुविधा के साधन आदि को देख कर स्त्री प्रसन्न होती है मस्त खाती है मस्त पीती है अर्थात् बैठे बैठे सुखपूर्वक इच्छा करती रहती है। साथ ही पुरुष गाड़ी में जुते बैल की तरह परिश्रम करता रहता है , परंतु स्त्री कभी संतुष्ट नहीं होती अपितु पुरुष से और कुछ न कुछ मांग करती ही रहती है उन्हें इस बात का विचार नहीं होता की पुरुष ये सब कितनी तकलीफ से गुजर कर एकत्रित कर पाता है, स्त्रीया पुरुष को सदैव हतोत्साहित ही करती हैं
                     श्याला  श्वसुर: महाबुद्धि, किन्तु वा न महीतले ।
                     स्त्री स्वप्ने ते महादानी , वस्तुतः ते महाठग: ।।
शब्दार्थ: साला और ससुर महा बुद्धिमान होते हैं परंतु केवल स्त्री के सपनों और कल्पना में ही,     स्त्री के सपनों में वो महादानी हैं किंतु साले और ससुर महाठग ही होते हैं
भावार्थ: स्त्री को लगता है की उस्का भाई और बाप ही इस दुनिया में सबसे अधिक समझ वाले इंसान हैं परंतु सिर्फ ये स्त्री का सोचना ही है, स्त्री का भाई और बाप ने  बहुत कुछ त्याग और उत्सर्ग किया है ऐसा वो बार बार सुनाती रहती है परंतु होता यह है कि साला एवम्  ससुर ऐसे असुर होते है जो ठग पूर्वक पुरुष को अपनी बला पकड़ा देते हैं  खुद अपना सिरदर्द  स्त्री के पति को दे डालते हैं। पुराने ज़माने से स्त्रियों के लिए पतिव्रता होने के फायदे गिनाये गए हैं क्यों की सभी को पता है स्त्री जब तक न चाहे प्रणय सम्बन्ध बनते ही नहीं। और ससुराल जा कर रहना  स्त्रियों के लिए ही बनाया क्योंकि जवान होती लड़की को किसी दूसरे से चिपकाना ही बेहतर होता है।
              सदा दुःखभागी परिजन पतिनाम , विपरीत भागी स्वजनं स्त्रीणां ।
             प्रथमम् सदा कतुवचनम श्रुणोति , द्वितीये सदैवम् मत्तः चरन्ताम् ।।
शब्दार्थ: पुरुष के परिजन दुःख के ही लिए जन्म लेते हैं, और स्त्री के घर घर वाले सुख के लिए उत्पन्न होते हैं, प्रथम वाले अर्थात पुरूष के परिजन कटु वचन सुनने के आदी हो जाते हैं और दुखी होकर सुनते रहते है वहीँ द्वितीय मतलब नारी के घरवासि मस्त होकर विचरण करते हैं।
भावार्थ: चाणक्य काका का कहना है कि स्त्रियां अपने पति को इतना कुछ सुनाती है उनकी माँ बहन को गाली देती है  समझ दार पुरुष रक्त का घूँट पीकर सुन लेते हैं परंतु यदि कभी आवेग न रोक पाया पुरुष कुछ स्त्री के परिवार के विषय में कह दे तो दुगने वेग से खुद और अपने परिजनों के लिए भयंकर अपशब्दों का  प्रहार उसे सहन करना पड़ता है और न चाहते हुए स्त्री के सामने उसके घर वालो की झूठी प्रशंसा करनी पड़ती है। कुल मिला कर सांप छछूंदर वाली कहावत पुरुषों के लिए ही बनी है
              शास्त्रज्ञा  न  ताड़ येत नारी, रुदनम् तस्या महा अस्त्र।
                 यथा रोदनम् आरम्भ: , सकल विश्व  शत्रुम् भवेत् ।।
शब्दार्थ: शास्त्र में स्पष्ट आज्ञा है की स्त्री पर कभी हाथ नहीं उठाना चाहिए ( शायद ) क्योंकि अगर एक बार जो उसने रोना प्रारम्भ कर दिया तो उस ही समय से सारा विश्व आप से शत्रुवत व्यव्हार करने लगेगा।

भावार्थ: ग्रंथकार का मानना है की स्त्री ताड़ना के विरोध  में जो शात्रज्ञा है वो स्त्री के रोने वाले ब्रम्हास्त्र से बचने के लिए ही है क्योंनकी समाज के सारे लोग भले खुद स्त्री पर अत्याचार करते हों परंतु दूसरी स्त्री के लिए सहानुभूति का प्रदर्शन करते हैं और पुरुष को महा क्रूर बता कर आरोप लगा कर सजा दे डालते हैं, क्योंकि स्त्री कटुवचन बोल कर जितना आहत पुरुष को कर सकती है उतना पुरुष उसकी पिटाई कर के भी नहीं कर सकता उल्टा स्त्री पर हाथ उठा वह समाज की नज़रों में गिर जाता है। और स्वयं की नज़रो में भी गिर जाता है
         विवाह पूर्वे  सा नितम्ब  घर्षिणी, अल्प  निंद्रा  रुक्ष भोजनम् च।
       पश्चाद् विवाहे वृहद् जाता नितम्ब:, महाभार चेष्ठा  महाभार  चेष्ठा ।।
शब्दार्थ: स्त्रियां विवाह से पहले अपने पिता गृह में चाहे काम भोजन और अल्प निंद्रा में रहकर भी कोई शिकायत नहीं करती हो और अपने शरीर के नाजुक अंग जैसे की नितम्ब में पीड़ा भी सहन कर लेती हैं परन्तु पति गृह में आराम से मस्त रहती अपने शारीर का वजन बढ़ा लेती है  और फिर उससे अपने नितम्ब का भार भी नहीं उठाया जा सकता ( व्यंगयोक्ति अलंकार) ।
भावार्थ: स्त्री अपने पति से इतनी अपेक्षा लगा कर इतनी फ़रमाईश कर देती हैं जैसे की वो गृहस्वामिनी न होकर पति की माँलकिन हो और फिर खूब आराम के साधन ढूंढ कर पति को कंगाल बना कर खुद इतनी आलसी बन जाती है और शरीर की आकृति बेडौल बना डालती हैं ।
                                                  ।। इति ग्रन्थ।।
इस  ज्ञान वर्धक सामग्री को पढ़कर सभी को पढ़ने को प्रेरित करे और कृपया महिला आयोग में शिकायत न करें क्योंकि मैं एक महिला से ही इतना डरता हूँ तो महिला आयोग तो पता नहींक्या करेगा
आपका अपना
आशुतोष शर्मा 

घुमड़ते बादल........

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