Monday, December 19, 2016

श्री राहुल गांधी की दुविधा

व्यक्ति विशेष: श्री राहुल गांधी
उपाध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

        आज व्यक्ति विशेष में हम बात करेंगे वर्तमान कांग्रेस के युवराज श्री राहुल गांधी जी की जो आजकल एक नयी तरह की राजनीती के कारण चर्चा में हैं जो कि उनके लिए अच्छा भी है। क्योंकि जिस तरह 2014 का लोकसभा  चुनाव में उनकी पार्टी की हालत उन्ही के परिवार के चापलूस मंत्रियों के चलते हुयी, और जिस तरह की छवि जनमानस में उनको लेकर है  उस छवि को तोडना अभी उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुयी है। परंतु जिस विधि का उपयोग पनीर बनाने में होता है उस विधि से दही नहीं जमाया जा सकता है  और ठीक  वही  स्थिति कमोबेश कांग्रेस की हो रही है। कांग्रेस के कर्णधार यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि युद्ध लड़ने के लिए सेना होती है जिसका सेनापतित्व एक अनुभवी सेनापति ही कर सकता है कुशल रणनीति और सुचारू सञ्चालन ही युद्ध में विजयश्री दिला सकता है । दुर्भाग्य से कांग्रेस में ऐसा कोई महारथी फ़िलहाल नहीं दीखता है, जिसके  चलते उपाध्यक्ष स्वयं आक्रमण की अगुआई कर रहे है , राजनीती के इस रणांगण में कांग्रेस का हरावल दस्ता सेनापति के पीछे खुद को बचाने में ही लगा है  और सेनापति जो  खुद ही युवराज है  कम अनुभव के चलते अपनी ही छवि पर रोज़ नए नए घाव लगाते जा रहे है । बाद में बाकि के सिपहसालार हारे हुए जुआरियों की तरह अपने नेता को सही सलाह न देकर चापलूसी में आकर नेता के हर कदम को सही ठहराने में जुट जाते हैं।
        वर्तमान में राहुल गांधी बिलकुल वही सबकुछ कर रहे हैं जो अरविन्द केजरीवाल  दिल्ली में सफलता पूर्वक कर चुके हैं, लेकिन राहुल गांधी क्योंकर असफल  पर असफल हुए जा रहे हैं? क्या कारन है कि जिस  तरह की जुबानी जमाखर्च से केजरीवाल ने दिल्ली की चूलें हिला डाली वही शब्दावली राहुल गाँधी का कोई भला नहीं कर  पा रही है? तो इसका सीधा सा एक कारण है और वो है दोनों नेताओ और पार्टियों में जमीन आसमान का अंतर और दोनों के नेतृत्व का भिन्न तरीको से हुआ विकास है । अरविन्द केजरीवाल एक मात्र थिंकटैंक है अपनी पार्टी के और उनके पास खोने को कुछ भी नहीं है न ही कोई राजनीतिक विरासत है जिसकी परम्परा को उन्हें निभाना है और उनका वोट बैंक ज्यादा तर्क करने में समय नहीं व्यर्थ करता है ज्यादातर केजरीवाल समर्थक लोग युवा है जो किसी बड़ी पार्टी में जगह बनाने में समर्थ नहीं हुए वो ही आप के कार्यकर्त्ता बने हुए हैं, वहीँ दूसरी और 125 साल पुरानी सर्वाधिक समय शासन में रहने वाली पार्टी जिसकी एक विचारधारा है और संसदीय परम्पराओ की मर्यादा  इसका नेतृत्व समझता है और रणनीति से चल कर राजनीती करते आया है परन्तु लोकसभा के चुनावो में मिली हार से ही पार्टी कमजोर नहीं हुयी, कांग्रेस तो भारतीय जनसंघ के बीजेपी में विलय के बाद से ही कमजोर होती जा रही है।
ऐसे में श्री राहुल गाँधी को सिर्फ इतना करना था कि अपनी माताजी की तरह पीएम के दावेदार न बनकर केवल पार्टी संगठन का कामकाज देखना था, और यूपीए के समय हार के जिम्मेदार नेताओ को दरकिनार कर के नए कार्यकर्ताओँ को आगे बढ़ाना था जो नयी टीम बनती वो कुछ सपने मतदाताओं के दिलो में जगा सकती थी और उसके बाद किसी वफादार को पीएम उम्मीदवार बना देते और भ्रष्टाचार को रोकते तो यह गत न हुयी होती परंतु जिस तरह की सामंती संस्कृति कांग्रेस में है उसके चलते या तो श्री राहुल गांधी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि इस संगठन को कैसे सुधारा जाये क्योंकि राहुल खुद इसी सामन्तवाद और परिवारवाद के चलते यँहा इस मुकाम तक पहुंचे है और या फिर उनके राजनीति इनके वश का कार्य ही नहीं, यह बात सारी कांग्रेस जानती है लेकिन अपनी गाँधी परिवार की भक्ति को अस्त्र बना कर नेतागण अपने अपने निजी स्वार्थ बचाने में लगे हुए हैं। जिस दल में अपने ही नेतृत्व को ठीक करने का सामर्थ्य विकसित न हुआ हो वो विपक्ष के लिए तो सर्वथा अनुपयुक्त है इन्हें चाहिए चौवालीस सीटो से त्यागपत्र दे कर निर्दलीय चुनाव लड़ ले शायद मतदाताओ ने जो इन्हें जिताया था में विश्वसनीयता बनी रहे।
श्री राहुल गांधी ने मनरेगा में मजदूरी कर के, दलित के घर भोजन विश्राम कर के, अध्यादेश को फाड़ के सब कुछ करके देख लिया प्रधानमंत्री पर निजी आक्रमण भी कर के देख लिया कोई परिणाम नहीं निकला अपनी दादी और पिता के किस्सों से मतदाताओ को जोड़ने का विफल प्रयास भी किया लेकिन कभी भी निर्भया कांड के बाद आंदोलनकारी जनता से साथ खड़े नहीं हुए और न ही रामदेव और अण्णा हज़ारे के पास ही गए हो ऐसा किसी को याद आता हो। जब भी पार्टी को जरूरत पड़ी युवराज नदारद थे। जनता के बीच में जाना और जाने  का दिखावा करना दोनों अलग अलग बात है और किसी विरोधी के खिलाफ निजी हमले करने के विचार उनके सहयोगी दिग्विजय सिंह और कपिल सिब्बल सरीखे मौकापरस्त नेताओ से ही उनके दिमाग में आया होगा लेकिन ये बात श्री राहुल गांधी जी को समझनी चाहिए कि अति कमजोर विरोधी ही निजी हमले करता है क्योंकि स्तर के वाद विवाद में वह परास्त हो चूका होता है यहाँ लालू मायावती के राज्यो में तो स्तरहीन आक्षेप चल सकते हैं परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर ये सड़क की राजनीती ज्यादा दिन नहीं चल सकेगी। श्री राहुल गांधी अगर केजरीवाल को आदर्श माने बैठे हैं तो ये उनकी बड़ी मूर्खता होगी क्योंकि केजरीवाल में वह सामर्थ्य नहीं है कि भारत के प्रधानमंत्री बन सकें उनकी झगडे आरोप और कीचड़ की राजनीति एक ही तरह के निराश मतदाताओ को ही आकर्षित कर सकती है। यदि राहुल को किसी की नक़ल ही करनी हो तो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रमोदी की की करनी चाहिए हो सके बिना अक्ल की नक़ल उनका और कांग्रेस पार्टी का कुछ भला कर सके।
और अंत में चापलूसों से बच के यदि राहुल गांघी रह सके तो बेहतर होगा । इस विषय में श्रीतुलसीदास जी की यह चौपाई उद्दृत करता हूँ
सचिव वैद गुर तीन जो प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होहिं बेगहि नास
अर्थात् सलाहकार, वैद्य और गुरु यदि किसी भय या लालच के चलते सिर्फ मीठा मीठा असत्य ही बोलते रहे तो राज्य धर्म और शरीर तीनो जल्द ही नष्ट हो जाते है  श्री राहुल गाँधी को समय रहते स्वाध्याय करना होगा।

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