घणी अळगी कोई जगह नी है , अठे कन्ने इज़ नीमड़ा माथे जीव जिनावर रेवे वांरी कहाणी है। एक कोटरो है नीमड़ा में जिण रे मायने एक छोटो सो क टीलोड़ी रो परिवार रेवे, परिवार में है मां किशनी , बाप ढगळराम अर बे दुन्या छोरी बंटूलता। अबे कोटर रे मायने चां चीं माच री है ....... अब थे पूँछों कीकर....? थे खुद ही सुण ल्यो.....
"मर ये ! अठी आव ......। ओ छोरी,..... थारा कईं कान बोळा व्है गिया? " किशनीबाई आज रीसा बळती बोल री ही।
" आये ढब ये ढब महाराणी ! ..... गाळ क्यान काढ़े? हो काईं गियो ? " बापड़ो ढ़गळयो माचा ऊँ उभौ व्हेर बोल्यो .... "लाण टीलोड़ी ... म्हारी नानकी... रमती व्हेली अठे कठे जड़े इज़। "
"काईं...? काईं....? एकर पाछा बोलजो खरी ?
" नानकी....? बा नानकी है तो थे कुण हुया? गोदी रा टाबर? बोलो? "
"ऐड़ी भैंस होय गी ... आधा किल्ला रो बोझों व्हे गी... डाकण.... हेंग बखत खाबा ने चावै....... पाव ऊ बत्तो कोई टीलोड़ो ढूँढ़या नी लादे .... ई भैंस ने कुण ब्यावी?" किशनीबाई रा रीस के मारे दांत किटकिटाबा लाग्या।
"शांत दुर्गा शांत.... ! हेला मत करे! बारणे अर आडोस-पाड़ोस में हेंग नीमड़ा माथे रा जीव जिनावर भेळा व्हे जाई।... थूं अठे ढब, हुँ बीने नाळ र पाछो आऊँ।" ढ़गलयो ठंडो छांटो कर्यो।
" कोरो नाळबा ऊँ काम नी चाले, .. बी ढेस्पा ने लेर इज़ आजो" किशनी बोली।
" हाँ हाँ ... !" ऐड़ो बोल ढ़गलयो खाडा म्हे से बारे आयो ही हो के बंटूलता दरवाज़ा पर ही ऊभी लादी, अर बोली।
" भई सा ! देखो नी आ भुजाई कत्ता हेला करे। हुँ हेंग पंचायती सुण ली थां दोन्यूं री। ...... ।
" सुण ली तो मायने बड़ती नी पाड़ा ? " किशनी फेर रीस में बोली
बारे ऊभी बंटूलता बोली " सुण भुजाई ! इयूँ नी बडू मायने ... थूं हाका करे अर म्हारे अर हाका के नी बणे। "
" वा ...वा.. बारेज़ ऊभी रह । म्हारे राम राजी है अर कोई ब्याव कोणी बिगड़ रियो म्हारे, मर बारणे...... भूखी अर तिसाई.... " किशनी बोल र सांत व्हे गी।
सुणता ही बंटूलता रा पेट म्हे चटका चाल्या अर बोली " सुण ये भुजाई ! ओ म्हारी बाई! थारे म्हार सु लड़ाई है रोटियाँ से कोनी, बापड़ी रोटीयां ने क्यु सुखावें है........ अन्न रो अपमान मत कर ...... म्हे पोई पोई हेंग खा लेऊँ ..."
अर मायने बैठ गी ।
किशनी बाप अर बेटी दुन्या ने रोटी पिरस अर खुद भी लेर जीमवा बैठ गी, थोड़ी दूर पेली हेला करतो टीलोड़ी परिवार प्रेम से भोजन आरोगतो गियो। तीनू धाप र जीमया, फेर सियाळा को बखत हो जो बंटू बाईसा कोठयार म्हे से दो तोळा मूफळी काढ़ र रसोड़ा म्हे भूंज र ले आयी, तीनू खाता हा, अळाव बळ रह्यो हो, बंटूडी कुतर कुतर मूफळी खा री ही , ढगलियो प्रेम सु आपणी लाड़ली टीलोड़ी ने खाता देख मन मे राजी हो रियो।
एक बाप रो नाजुक काळजो बेटी ने खुद उ न्यारो करबा के बारा में सोचबा भी नी चावे आ बात कालजयी सत्य है। एक तर्कशील आदमी जद तक बेटी रो बाप नी बणे जद तक ही तर्कशील रह सके है फेरु बेटी रा जलम हुता ही बीरो तर्क रो टोकरों आदमी री लुगाई उठावे है, बाप के लिए बेटी कदैई मोटी नी व्हे , छोरी को ब्याव बाप काळजै रे आगे मजबूर होर करे है। फेरु मां बेटी का ब्याव के ताई हाका करे अर बाप ने झकझोरे है । कारण हीधो हीधो ओ ही है कि माँ फेर तर्क सु सोचबा लग जावे है अर बा ही मां बेटा रा संबंध म्हे गेली हो जावे है अर बाप छोरा के लारे जमदूत की नाई लाग जावे। बेटो समाज मे असफल नी रह जावे आ जिम्मेदारी बाप उठावे है अर बेटी ब्याव के बाद सासरा में खट सके अर आगला घर को मान बढ़ावे आ बात माँ ही नक्की करे है। माँ-बाप दोनूं टाबरां ने बराबर लाड़ करे है ज्यूँ हाथ री आँगलिया में कोई भेद कोणी ।
मन ही मन मे चिंता करती किशनी आपरी टीलोड़ी ने देख र सोच री ही के बंटूलता कित्ती बेगी मोटी व्हे गी अर लागे कि जियां काले री बात होवे, रात सूती अर भाग फटता ही बखत बदल गियो। एकदम आगला घर जाबा लायक होगी टीलोड़ी......., पेलां नानी ही जरे गोदी में घुस बैठी रेती..... अब मोटी व्हेगी तो टापरो इज़ ओछो पडबा लाग गियो। किशनी बिचार करती ही इत्ता में चरर चरर कर खट की आवाज़ आयी, अर किशनी चमक गी, जो हुयो बी न देख इत्ती देर ऊ सांत बैठी किशनी फेरु बड़बड़ करबा लग गी।
"देखो ..... देखो... बंटूडी रा भई सा !
ई पाडा ने देखो फेरु माचो तोड़ नाक्यो आ, ...... ओ म्हारा रामजी .... थोड़ी बुद्धि म्हारी छोरी ने भी देवो। ....... सुण बंटूडी थारे ब्याव में डायजा में लोखंड रो माचो देणो पड़ी, थूं खुद रो बोझों कम नी कर सके काईं ......? कित्ती बार काळी मासी बोली ही कि मंगला गौरी का बरत कर ले..... बापड़ी बा मासी बोल बोल थक गी पण आ छोरी खाबो नी छोड़ सके"
"काई दुख है भुजाई थारे ...... क्यू म्हारा खाबा के निजर लगावे? अर इत्ती चिड़चिड़ी कायने होव री है ? " बंटूडी रुआंसी होर बोली।
" देख लाली ! सुण थूं म्हारी लाड़कड़ी है अर मने थारे खाबा से कई दुख कोणी। पण बेटा! थारो शरीर कित्तो भारी हो गियो है, थूं बिचार तो कर......।
रोज़ सुपना में बिलाई दीख जावे है ...... नीमड़ा माथे कागला भी नरा सारखा बैठ्या रेवे...... आ जीवणी आँख और फड़क फड़क कर री है कोई मीना खांड हो गियो।.... लाली म्हारो काळजो कांपे ..... टीलोड़ी ..... छोरी...भागबो छोड़ थारे से चालबो भी दोरो है, रामजी रुखालो है ।
लाली....! जीवती रहई तो ब्याव भी हो ज्यायी .... मने थारी चिन्ता होवे जो गाळ काढूं हू.... बड़बड़ कर हूं। " किशनी बोल र सिसकबा लागी।
" कोई कोन मरूँ इत्ती बेगी ......, आंख तो फड़कती रेवे ही है.... थूं मस्त रह भुजाई म्हारी..... अब रोवे मती .... । " बंटूडी आपरी माँ ने दिलासों दे री ही।
आ सारी घटना ढग़ल राम जी सुणता हा, माचा माथे पड़्या पड़्या रात काळी की । भोर व्ही चिड़कलियाँ चींचा चींचीं करबा लागी। बंटूडी आंगणा में गूदड़ी में लपट र सूती ही, अर किशनी उठ र आंख्या मसलती ही... फेर निजर घुमाई तो बंटूडी रा भइसा माचा माथे हा इज़ कोनी.... । किशनी बिचार करती ही दरवाज़ा से बारे देखबा गी, ..... बारे मिन्दर की टूंटी पर ढगलियो सिनान कर रह्यो हो ।
" आज इत्ता बेगा? ........ ? " किशनी सोच री ही इत्ता में ढगलियो हाथ उ इशारो कर बतायो के बो मिन्दर जा रियो है, अबे किशनी री जिज्ञासा थोड़ी क सांत व्ही अर बा चाय बणावा रसोड़ा में बड़ गी।
अर अठे ढगलियो न्हा धोर बालाजी रे देवरे गियो, मधर मधर घण्टी बाज री ही... बालाजी के नियो चोळो चढ्यो हो ..... मंगलवार हो चमेली रा तेल री खसबू आ री ही.. अगरबत्ती रा धुआंड़ा अर घी रा दीपक रा प्रकास में बालाजी अभय मुद्रा में आसिरवाद देता हा..... परभात फेरी का साधू भी मिन्दर में एक कानी बैठ्या भजन बोल रह्या हा, ढगलिया रा मन का भाव भी भजन रे सागे हिलमिल सा ग्या, भजन रा बोल हा
" राम जी को नाम लेवूं .... ओओ... ओ ..
रामजी को नाम लेवूं फेर भी म्हारे टोटो.....
अररर अररर... अररर घुमा दे रे म्हारा बालाजी
घम्मर घम्मर घोटो.... घुमा दे रे म्हारा बालाजी"
भजन सुण र बापजी सु चणा-गुड़ रो परसाद लेर आपणा ढगळरामजी डागळे माथे चाल्या, डागळे बाजरी बिखेरी व्ही ही, नरा पक्षी चुगता हा अर एक कुणा में मीठू महाराज आपरा चेला रे भेळे भजन करता अर बाजरो चुगता हा।
"आ दुनियादारी औगुण कारी कोई ने भेद मत दईजे रे
हेली म्हारी निर्भय रेजे रे........ भगतां कीकर पार उतेरो ...... छूटे नी जरे तेरो-मेरो......। अलख निरंजन सब दुख भंजन" मीठू महाराज बोल र चुप व्हे गिया।
एक चेलो बोल्यो " बावजी ! दुनियादारी में रेवणो अर भेद भी नी देवणो आ कीकर चाल सके? लुगावड़ी अर घर रा टाबर आजकाल नी बताया इज़ मगज़ री लीला जाण जावे अर तेरो मेरो नी होवे तो वेवार कीकर होउसी? "
"देख रे चेला.... जगत रा खेला ...... भरी कोथळी .. होये मेळा.... , ई जगत रा भरम है भारी ..... सुगंधि आवे .... पण..... टिपारियो ख़ाली, .... लुगावड़ी अर धणी ..... सब माया री मणि...... अर सुण ...... बैध पथ्य बतावै अर करे दुवाई...... पण ध्यान राखजे ..... कान्ध्यो कांध देई ..... भेळे नी बळ ज्यायी....। " मीठू महाराज बोल र चुप हुया।
चेलो पछाणै बोल्यो " बावजी थांकी सगळी बातां सच है , म्हे तो केवल उपाय पूछियो हूं म्हारा गरुजी किरपा राखो।"
मीठू महाराज प्रेम सूं बोल्या " सुण रे भाया.... परभू री माया.... वही छुड़ावै ..... जो है फसाया.... दो विधि सागर तर जासी.... खुद तिरे अर नौका चढ़ जासी.... नाम री नौका पार उतारे.... खुद तिरे तो बूड़े बीच मँझारे... । "
" ठा पड़ी? गियान हुयो? "
" हां जी गुरां सा! .... बस रामजी रो नाम लेवणो है बाकी सब रामजी निवेडी। " चेलो हाथ जोड़ बोल्यो।
" सबां ने समझ आय ग्यो? .... चाल जिवडा गगन में चालां... उठा कमंडल... अर ले ले माळा... " अर मीठू महाराज उड़बा लाग्या के बीच मे ढगलियो कूकायो ......
" बावजी ! बावजी ! त्राहिमाम त्राहिमाम ..... ! "
मीठू महाराज त्रिकाल दरसी हा बे ढगलिया री मन री बात जाणता हा , रुक गिया अर चींचाड़ा करता टीलोड़या ने देख र बोल्या .... "काईं रे ढगलिया ! कीकर बळीया ? "
" बावजी दुखी हूं .. सरणे आयो हूँ.... बेटी रो बाप हूं.... चिंता खावे ... अब थे ही बचा ल्यो" बंटूलता रा भइसा बोल्या।
मीठू महाराज बी दिन लेर म्हे हा , एक बार में इज़ न्याव कर दियो .... बोल्या " थूं खुद नी जलमियो .... खुद नी पनपियो.... राम बगर काईं करतो थूं..... लारलै भव में करम करया जणे ..... चालता भव में भरता थूं.... धणी- लुगाई- बेटा-बेटी , राम सबां रो भरता है..... करम करियां जा नाम लिये जा... फल की चिंता करता क्यूँ? "
" बावजी ! नाम तो लेवणो इज़ है, अर बेटी रो ब्याव रामजी ही मांडी.. , म्हारी काईं औकात है, पण आप सब अंतर री माया जाणों हो..., छोरी मोटी होय गी अर एक भी टीलोड़ो तियार कोनी म्हारी नानकी सूं ब्याव करबा खातर....कोई उपाय तो बताओ" ढगलियो हाथ जोड़ प्रार्थना करी ।
" सोळा सोमवार रा बरत नी होवे..... एक सोमवार करवा लें..... गया जलम को पूण्य फलणो है..... भोळा नाथ ने मनवा ले.... जबरो जवाई ज्यान लियासी बेटी थारी परण जासी..... अब जा एक नारेल चढ़ा दे टूट गयी थारी फांसी..... मावस है अर अधिकमास है पांच दिनां अब बाकी है..... जय हो जय हो भोळा नाथ थूं साधु री पत राखी है।" मीठू महाराज बोल र मंद मंद मुळकिया।
ढगलियो हाथ जोड़ बोल्यो " बावजी ! में मूरख कोरी चिंता करतो रियो, आप री किरपा से सब काम हो ज्यायी , पण .... एक चिंता नाटे तो बीजी चिंता आ ज्यावै, म्हारी छोरी आधी घंटा भी बगर खाया नी रह सके, बा बरत कीकर करेला? "
" एक गजानन एक बालाजी ..... दूजो भोलो पेलो मौजी..... ब्याव करावे है गणराया ..... लाडू देर मना ले भाया..... ढील करे फिर भी गणराजा..... बालाजी निपटासी काजा..... जा रे ढ़गळ्या पूजा कर ल्ये..... पेलो नी माने तो दूजो कर ल्ये...... " बोलता बोलता मीठू महाराज सबां ने आसिरवाद देवतोड़ा आकास में उड़ चाल्या , अर ढगलियो भी बावजी ने परनाम कर घरां ने हाल्यो।
" आये ढब ये ढब महाराणी ! ..... गाळ क्यान काढ़े? हो काईं गियो ? " बापड़ो ढ़गळयो माचा ऊँ उभौ व्हेर बोल्यो .... "लाण टीलोड़ी ... म्हारी नानकी... रमती व्हेली अठे कठे जड़े इज़। "
"काईं...? काईं....? एकर पाछा बोलजो खरी ?
" नानकी....? बा नानकी है तो थे कुण हुया? गोदी रा टाबर? बोलो? "
"ऐड़ी भैंस होय गी ... आधा किल्ला रो बोझों व्हे गी... डाकण.... हेंग बखत खाबा ने चावै....... पाव ऊ बत्तो कोई टीलोड़ो ढूँढ़या नी लादे .... ई भैंस ने कुण ब्यावी?" किशनीबाई रा रीस के मारे दांत किटकिटाबा लाग्या।
"शांत दुर्गा शांत.... ! हेला मत करे! बारणे अर आडोस-पाड़ोस में हेंग नीमड़ा माथे रा जीव जिनावर भेळा व्हे जाई।... थूं अठे ढब, हुँ बीने नाळ र पाछो आऊँ।" ढ़गलयो ठंडो छांटो कर्यो।
" कोरो नाळबा ऊँ काम नी चाले, .. बी ढेस्पा ने लेर इज़ आजो" किशनी बोली।
" हाँ हाँ ... !" ऐड़ो बोल ढ़गलयो खाडा म्हे से बारे आयो ही हो के बंटूलता दरवाज़ा पर ही ऊभी लादी, अर बोली।
" भई सा ! देखो नी आ भुजाई कत्ता हेला करे। हुँ हेंग पंचायती सुण ली थां दोन्यूं री। ...... ।
" सुण ली तो मायने बड़ती नी पाड़ा ? " किशनी फेर रीस में बोली
बारे ऊभी बंटूलता बोली " सुण भुजाई ! इयूँ नी बडू मायने ... थूं हाका करे अर म्हारे अर हाका के नी बणे। "
" वा ...वा.. बारेज़ ऊभी रह । म्हारे राम राजी है अर कोई ब्याव कोणी बिगड़ रियो म्हारे, मर बारणे...... भूखी अर तिसाई.... " किशनी बोल र सांत व्हे गी।
सुणता ही बंटूलता रा पेट म्हे चटका चाल्या अर बोली " सुण ये भुजाई ! ओ म्हारी बाई! थारे म्हार सु लड़ाई है रोटियाँ से कोनी, बापड़ी रोटीयां ने क्यु सुखावें है........ अन्न रो अपमान मत कर ...... म्हे पोई पोई हेंग खा लेऊँ ..."
अर मायने बैठ गी ।
किशनी बाप अर बेटी दुन्या ने रोटी पिरस अर खुद भी लेर जीमवा बैठ गी, थोड़ी दूर पेली हेला करतो टीलोड़ी परिवार प्रेम से भोजन आरोगतो गियो। तीनू धाप र जीमया, फेर सियाळा को बखत हो जो बंटू बाईसा कोठयार म्हे से दो तोळा मूफळी काढ़ र रसोड़ा म्हे भूंज र ले आयी, तीनू खाता हा, अळाव बळ रह्यो हो, बंटूडी कुतर कुतर मूफळी खा री ही , ढगलियो प्रेम सु आपणी लाड़ली टीलोड़ी ने खाता देख मन मे राजी हो रियो।
एक बाप रो नाजुक काळजो बेटी ने खुद उ न्यारो करबा के बारा में सोचबा भी नी चावे आ बात कालजयी सत्य है। एक तर्कशील आदमी जद तक बेटी रो बाप नी बणे जद तक ही तर्कशील रह सके है फेरु बेटी रा जलम हुता ही बीरो तर्क रो टोकरों आदमी री लुगाई उठावे है, बाप के लिए बेटी कदैई मोटी नी व्हे , छोरी को ब्याव बाप काळजै रे आगे मजबूर होर करे है। फेरु मां बेटी का ब्याव के ताई हाका करे अर बाप ने झकझोरे है । कारण हीधो हीधो ओ ही है कि माँ फेर तर्क सु सोचबा लग जावे है अर बा ही मां बेटा रा संबंध म्हे गेली हो जावे है अर बाप छोरा के लारे जमदूत की नाई लाग जावे। बेटो समाज मे असफल नी रह जावे आ जिम्मेदारी बाप उठावे है अर बेटी ब्याव के बाद सासरा में खट सके अर आगला घर को मान बढ़ावे आ बात माँ ही नक्की करे है। माँ-बाप दोनूं टाबरां ने बराबर लाड़ करे है ज्यूँ हाथ री आँगलिया में कोई भेद कोणी ।
मन ही मन मे चिंता करती किशनी आपरी टीलोड़ी ने देख र सोच री ही के बंटूलता कित्ती बेगी मोटी व्हे गी अर लागे कि जियां काले री बात होवे, रात सूती अर भाग फटता ही बखत बदल गियो। एकदम आगला घर जाबा लायक होगी टीलोड़ी......., पेलां नानी ही जरे गोदी में घुस बैठी रेती..... अब मोटी व्हेगी तो टापरो इज़ ओछो पडबा लाग गियो। किशनी बिचार करती ही इत्ता में चरर चरर कर खट की आवाज़ आयी, अर किशनी चमक गी, जो हुयो बी न देख इत्ती देर ऊ सांत बैठी किशनी फेरु बड़बड़ करबा लग गी।
"देखो ..... देखो... बंटूडी रा भई सा !
ई पाडा ने देखो फेरु माचो तोड़ नाक्यो आ, ...... ओ म्हारा रामजी .... थोड़ी बुद्धि म्हारी छोरी ने भी देवो। ....... सुण बंटूडी थारे ब्याव में डायजा में लोखंड रो माचो देणो पड़ी, थूं खुद रो बोझों कम नी कर सके काईं ......? कित्ती बार काळी मासी बोली ही कि मंगला गौरी का बरत कर ले..... बापड़ी बा मासी बोल बोल थक गी पण आ छोरी खाबो नी छोड़ सके"
"काई दुख है भुजाई थारे ...... क्यू म्हारा खाबा के निजर लगावे? अर इत्ती चिड़चिड़ी कायने होव री है ? " बंटूडी रुआंसी होर बोली।
" देख लाली ! सुण थूं म्हारी लाड़कड़ी है अर मने थारे खाबा से कई दुख कोणी। पण बेटा! थारो शरीर कित्तो भारी हो गियो है, थूं बिचार तो कर......।
रोज़ सुपना में बिलाई दीख जावे है ...... नीमड़ा माथे कागला भी नरा सारखा बैठ्या रेवे...... आ जीवणी आँख और फड़क फड़क कर री है कोई मीना खांड हो गियो।.... लाली म्हारो काळजो कांपे ..... टीलोड़ी ..... छोरी...भागबो छोड़ थारे से चालबो भी दोरो है, रामजी रुखालो है ।
लाली....! जीवती रहई तो ब्याव भी हो ज्यायी .... मने थारी चिन्ता होवे जो गाळ काढूं हू.... बड़बड़ कर हूं। " किशनी बोल र सिसकबा लागी।
" कोई कोन मरूँ इत्ती बेगी ......, आंख तो फड़कती रेवे ही है.... थूं मस्त रह भुजाई म्हारी..... अब रोवे मती .... । " बंटूडी आपरी माँ ने दिलासों दे री ही।
आ सारी घटना ढग़ल राम जी सुणता हा, माचा माथे पड़्या पड़्या रात काळी की । भोर व्ही चिड़कलियाँ चींचा चींचीं करबा लागी। बंटूडी आंगणा में गूदड़ी में लपट र सूती ही, अर किशनी उठ र आंख्या मसलती ही... फेर निजर घुमाई तो बंटूडी रा भइसा माचा माथे हा इज़ कोनी.... । किशनी बिचार करती ही दरवाज़ा से बारे देखबा गी, ..... बारे मिन्दर की टूंटी पर ढगलियो सिनान कर रह्यो हो ।
" आज इत्ता बेगा? ........ ? " किशनी सोच री ही इत्ता में ढगलियो हाथ उ इशारो कर बतायो के बो मिन्दर जा रियो है, अबे किशनी री जिज्ञासा थोड़ी क सांत व्ही अर बा चाय बणावा रसोड़ा में बड़ गी।
अर अठे ढगलियो न्हा धोर बालाजी रे देवरे गियो, मधर मधर घण्टी बाज री ही... बालाजी के नियो चोळो चढ्यो हो ..... मंगलवार हो चमेली रा तेल री खसबू आ री ही.. अगरबत्ती रा धुआंड़ा अर घी रा दीपक रा प्रकास में बालाजी अभय मुद्रा में आसिरवाद देता हा..... परभात फेरी का साधू भी मिन्दर में एक कानी बैठ्या भजन बोल रह्या हा, ढगलिया रा मन का भाव भी भजन रे सागे हिलमिल सा ग्या, भजन रा बोल हा
" राम जी को नाम लेवूं .... ओओ... ओ ..
रामजी को नाम लेवूं फेर भी म्हारे टोटो.....
अररर अररर... अररर घुमा दे रे म्हारा बालाजी
घम्मर घम्मर घोटो.... घुमा दे रे म्हारा बालाजी"
भजन सुण र बापजी सु चणा-गुड़ रो परसाद लेर आपणा ढगळरामजी डागळे माथे चाल्या, डागळे बाजरी बिखेरी व्ही ही, नरा पक्षी चुगता हा अर एक कुणा में मीठू महाराज आपरा चेला रे भेळे भजन करता अर बाजरो चुगता हा।
"आ दुनियादारी औगुण कारी कोई ने भेद मत दईजे रे
हेली म्हारी निर्भय रेजे रे........ भगतां कीकर पार उतेरो ...... छूटे नी जरे तेरो-मेरो......। अलख निरंजन सब दुख भंजन" मीठू महाराज बोल र चुप व्हे गिया।
एक चेलो बोल्यो " बावजी ! दुनियादारी में रेवणो अर भेद भी नी देवणो आ कीकर चाल सके? लुगावड़ी अर घर रा टाबर आजकाल नी बताया इज़ मगज़ री लीला जाण जावे अर तेरो मेरो नी होवे तो वेवार कीकर होउसी? "
"देख रे चेला.... जगत रा खेला ...... भरी कोथळी .. होये मेळा.... , ई जगत रा भरम है भारी ..... सुगंधि आवे .... पण..... टिपारियो ख़ाली, .... लुगावड़ी अर धणी ..... सब माया री मणि...... अर सुण ...... बैध पथ्य बतावै अर करे दुवाई...... पण ध्यान राखजे ..... कान्ध्यो कांध देई ..... भेळे नी बळ ज्यायी....। " मीठू महाराज बोल र चुप हुया।
चेलो पछाणै बोल्यो " बावजी थांकी सगळी बातां सच है , म्हे तो केवल उपाय पूछियो हूं म्हारा गरुजी किरपा राखो।"
मीठू महाराज प्रेम सूं बोल्या " सुण रे भाया.... परभू री माया.... वही छुड़ावै ..... जो है फसाया.... दो विधि सागर तर जासी.... खुद तिरे अर नौका चढ़ जासी.... नाम री नौका पार उतारे.... खुद तिरे तो बूड़े बीच मँझारे... । "
" ठा पड़ी? गियान हुयो? "
" हां जी गुरां सा! .... बस रामजी रो नाम लेवणो है बाकी सब रामजी निवेडी। " चेलो हाथ जोड़ बोल्यो।
" सबां ने समझ आय ग्यो? .... चाल जिवडा गगन में चालां... उठा कमंडल... अर ले ले माळा... " अर मीठू महाराज उड़बा लाग्या के बीच मे ढगलियो कूकायो ......
" बावजी ! बावजी ! त्राहिमाम त्राहिमाम ..... ! "
मीठू महाराज त्रिकाल दरसी हा बे ढगलिया री मन री बात जाणता हा , रुक गिया अर चींचाड़ा करता टीलोड़या ने देख र बोल्या .... "काईं रे ढगलिया ! कीकर बळीया ? "
" बावजी दुखी हूं .. सरणे आयो हूँ.... बेटी रो बाप हूं.... चिंता खावे ... अब थे ही बचा ल्यो" बंटूलता रा भइसा बोल्या।
मीठू महाराज बी दिन लेर म्हे हा , एक बार में इज़ न्याव कर दियो .... बोल्या " थूं खुद नी जलमियो .... खुद नी पनपियो.... राम बगर काईं करतो थूं..... लारलै भव में करम करया जणे ..... चालता भव में भरता थूं.... धणी- लुगाई- बेटा-बेटी , राम सबां रो भरता है..... करम करियां जा नाम लिये जा... फल की चिंता करता क्यूँ? "
" बावजी ! नाम तो लेवणो इज़ है, अर बेटी रो ब्याव रामजी ही मांडी.. , म्हारी काईं औकात है, पण आप सब अंतर री माया जाणों हो..., छोरी मोटी होय गी अर एक भी टीलोड़ो तियार कोनी म्हारी नानकी सूं ब्याव करबा खातर....कोई उपाय तो बताओ" ढगलियो हाथ जोड़ प्रार्थना करी ।
" सोळा सोमवार रा बरत नी होवे..... एक सोमवार करवा लें..... गया जलम को पूण्य फलणो है..... भोळा नाथ ने मनवा ले.... जबरो जवाई ज्यान लियासी बेटी थारी परण जासी..... अब जा एक नारेल चढ़ा दे टूट गयी थारी फांसी..... मावस है अर अधिकमास है पांच दिनां अब बाकी है..... जय हो जय हो भोळा नाथ थूं साधु री पत राखी है।" मीठू महाराज बोल र मंद मंद मुळकिया।
ढगलियो हाथ जोड़ बोल्यो " बावजी ! में मूरख कोरी चिंता करतो रियो, आप री किरपा से सब काम हो ज्यायी , पण .... एक चिंता नाटे तो बीजी चिंता आ ज्यावै, म्हारी छोरी आधी घंटा भी बगर खाया नी रह सके, बा बरत कीकर करेला? "
" एक गजानन एक बालाजी ..... दूजो भोलो पेलो मौजी..... ब्याव करावे है गणराया ..... लाडू देर मना ले भाया..... ढील करे फिर भी गणराजा..... बालाजी निपटासी काजा..... जा रे ढ़गळ्या पूजा कर ल्ये..... पेलो नी माने तो दूजो कर ल्ये...... " बोलता बोलता मीठू महाराज सबां ने आसिरवाद देवतोड़ा आकास में उड़ चाल्या , अर ढगलियो भी बावजी ने परनाम कर घरां ने हाल्यो।
अठे घरे किशनी बाट जोती ही दरवाजा माथे ऊभी ही ढगलिया ने देख र चाय गरम कर ल्याई अर ढ़गलयो बोलबा लाग्यो इज़ हो इत्ता में किशनी बीच मे फदक र बोली " बंटू रा भइसा! थे धरम करो जो तो ठीक पण बेटी घर मे बैठी होवे तो धरम लागे कोणी"
ढगलियो रीस नी करी मगज ठंडो राख्यो अर बोल्यो " म्हारी जगदम्बा! सुणबा तो कर , आप आपरी मत गायां कर । ..... बालाजी रे देवरे म्हे कोई भजन सुणबा कोई नी ग्यो.... , वठे तो मीठू महाराज न्याव करे जोकु बंटूडी रे ब्याव रे खातर अरज़ करबा गियो हो।"
" मने माफ करो बंटू रा भइसा ! म्हारो जीव उठोड़यो है, बंटूडी री चिंता व्है जो बोलबा की होदि नी रहै, थे तो आ बताओ क गुरां सा कई कियो?" किशनी पूछियो।
ढगलियो बोल्यो "होमवार के मावस पड़ेला जो अगर बंटू बरत राख लेवे सगळा दोस, गिरह कट ज्यायी, अर बंटू बरत कर ले इण खातर गजानन जी ने मनावनणों है अर गजानंद जी नी माने तो बालाजी रा गोडा पकड़ ल्यो , बालाजी तो है ई संकट मोचबा बाळा.... । अब तो बस काळे बुधवारा ने च्यार लाडू मोतीचूर रा गजनंद जी रे चढ़ाणा है बंटूडी रे हाथां सु"
ढगलियो रीस नी करी मगज ठंडो राख्यो अर बोल्यो " म्हारी जगदम्बा! सुणबा तो कर , आप आपरी मत गायां कर । ..... बालाजी रे देवरे म्हे कोई भजन सुणबा कोई नी ग्यो.... , वठे तो मीठू महाराज न्याव करे जोकु बंटूडी रे ब्याव रे खातर अरज़ करबा गियो हो।"
" मने माफ करो बंटू रा भइसा ! म्हारो जीव उठोड़यो है, बंटूडी री चिंता व्है जो बोलबा की होदि नी रहै, थे तो आ बताओ क गुरां सा कई कियो?" किशनी पूछियो।
ढगलियो बोल्यो "होमवार के मावस पड़ेला जो अगर बंटू बरत राख लेवे सगळा दोस, गिरह कट ज्यायी, अर बंटू बरत कर ले इण खातर गजानन जी ने मनावनणों है अर गजानंद जी नी माने तो बालाजी रा गोडा पकड़ ल्यो , बालाजी तो है ई संकट मोचबा बाळा.... । अब तो बस काळे बुधवारा ने च्यार लाडू मोतीचूर रा गजनंद जी रे चढ़ाणा है बंटूडी रे हाथां सु"
बोलर ढगलियो चुप हुयो, आखो दिन बुधवार रो इन्जार कियो फेरु बुधवार आयो तो ढगलियो उठता पेलां सत्तू हळवाई री दुकान सूं च्यार लाडू मोतीचूर रा बंधवार लियायो, बंटूडी ने आवाज देर बुलायो अर कह्यो क
" जा छोरी ! गजनंदजी रे मिन्दर अर ओ परसाद चढ़ा दीजै, अर सुण! पाछो मत ल्याजे अर बाँटजे बी मत, बस चढ़ा र पाछी आ जाई जे"
बंटूडी कह्यो क "ठीक भइसा !" लिया लाडू साथ मे अर देवरे हाळी, चालता चालता बंटूडी ने लाड़ूवांरी बास आवा लागी, बंटूडी खाबा री आदत उ मजबूर ही पण लाड़ू भी गजानंद जी रा हा खाती भी तो कीकर? बंटूडी धरम संकट में आय गी अब खावे तो मरी नी खावे तो मरी । अब न्याव कीकर होवै? खूब बिचार आया गयां , पछे गेला में बंटूडी ऊभी ऊभी सोच करती रही जरे आखर में जार बीरी बुद्धि चाली, बंटूडी मन ई मन मे बोली " गजानंदजी रे तो आज बुधवार है जोकु नरा इज़ लाड़ू चढेला अगर में दो च्यार कम चढ़ा देवू तो भी गजानंद जी ने काईं ठा पड़ेला? ..... इयूँ करूँ क तीन लाड़ू खा जाउ ? ..." सोच र बंटूडी तीन लाड़ू खाय गी अर छिन्यो क टूकड़ो चौथा लाड़ू रो भी तोड़ खा गी अर बाकी देवरे में चढ़ाय दिया । पछे गरु, सुक्कर, सनी अर दीत च्यार दिन बीत्या, दीतवार की संज्या हुई बंटूडी अर बीरा भइसा - भुजाई तीनूं रोटी जीम र बैठा हा ढगलियो बंटूडी ने प्रेम से बोल्यो .... " छोरी बंटूडी! काळे सोमवार अर मावस दोन्यूं है थूं थारा मूँड ने बस में राख जे अर संझ्या पेलां कई बी मत गटजे अर म्हारी माने तो पाणी बी मत गटजे, .... बस एक दिन काढ़ दे लाली ! .... फेरु थारो ब्याव हो जाय तो आखी उमर खाती रहिजे.... म्हे अर थारी भुजाई दोनूं थारे हाथ जोड़ बिनती करा ।"
मां-बाप री आ प्रार्थना बापड़ी बंटूडी ने छींका अणा दी, लाण सोच में पड़ गी। "आखो दिन भूखी अर तिसाई....? कीकर......? म्हारो जीव रहई तो ब्याव री गुंजाइस होवेळा..... इयूँ करू क अंधारे पेली घर सु भाग ज्याउ..... ? "
बंटूडी तो आपरो निस्चय कर लियो , अब नी तो कोई बाबो आवे अर नी कोई ताळी बजे , बंटूडी नी तो घरे रुकेला अर नी कोई बंटूडी ने बरत की बोल सकेला। सोम री सुबा व्ही अर ढगलियो र किशनी चीन्चब करण ढूकिया " अरे रामजी ! आ डाकण कठे गी रे..... ? म्हारी जीवणी आंख फड़ फड़ कर री ही ..... आ छोरी आज पक्को बरत से बचबा खातर भाग गी" किशनी बोल र चुळ चुळ रोबा लागी ।
ढगलियो बोल्यो " डांवी आंख तो म्हारी भी फड़के ही..... पण बंटूडी री माँ थूं रोवे मती.... मीठू महाराज मिन्दर रे डागळा माथे बाजरी चुगता व्हेला ... इयूँ करां वणारी सरणे चालां...... छोरी कठे है अर काईं उपाय सु पाछी आ जावेळी अर नाई नाई केस कित्ता जुज्मान सब सामने आ जा व्हेला ..... मीठू महाराज तिरकाल देख सके है ।"
धणी लुगाई दोन्यूं बालाजी रे मिन्दर रे डागळे भाग्या। मीठू महाराज आज बाजरी कोणी चुगता हा बे तो आंख्या मीच धियान करता हा, ढगलियो अर किशनी मीठू महाराज रा पगां में लोटपलोट करण लाग्या।
मीठू महाराज आंख्या मीच्या मीच्या इज़ बोल्या तो दोनूं सांत होर सुण बा लाग्या । मीठू महाराज बोल्या ..... " वा रे ढगलिया ..... वा रे ढगलिया ... केड़ी बेटी जलमी थूं..... हाथ परायां पुन्न करावे ...... इयों कोनी बणे धरमी थूं...... तीन लाड़ू थारी बंटू गट गी अर एक लाड़ू इज़ चढ़ायो है..... गजानंद के बट पड़ ग्यो अर बी रो मूँड सूजायो है...... गणराजा के हाथ जोड़ केह बाबा लाड़ू खायो थूं ..... तीन नही जरे एक इज़ खायो फिर क्यूँ रीस में आयो थूं?...... ब्याव पछे थारे आठ चढ़ा दूँ ... अब तो किरपा राखे थूं.... मान गिया जदि गणराजा जरे सकल सुफलता माने थूं... नी मान्यो जरे बालाजी रे पांव पकड़ रो ज्याजे रे...... बालाजी थारा संकट हरसी मस्त होय घर ज्याजे रे.....।"
मीठू महाराज ने परनाम कर धणी लुगाई दोन्यूं गजानंद जी रे देवरे हाल्या , मिन्दर में जार दंडौत करि गणराज के पग पकड़यां नरा गीत गायां पाछे भी गजानंद जी नी टूट्या अर उल्टो मूंडो फेर किवाडं बन्द कर लियां। बापड़ा ढगलिया र किशनी रोता रिया अर मायने मिन्दर में गजानन जी ने दया आयी पण बंटूडी पर रीसा बळतां गणेशजी आडो नी खोल्यो, धणी लुगाई दोन्यूं बालाजी रे देवरे भाग्या अर बालाजी रे मिन्दर में प्रार्थना करी
".... चालो चालो जी बालाजी म्हारे आंगणिये...
संकट आयो खूब डरायो अब थे आर सहाय करो
गजननजी भी मान्या कोनी थे हिज़ कोई उपाय करो
थांके चणा गुड़ रो भोग लगाउ अर सरसो दीप जुपावूं
थे तो करो मेहर करतार चालो म्हारे आंगणिये
बंटूडी कळा करावे है अर बुढ्यो बाप रुलावे है
गजाननजी लाड़ू खायो है फेरु भी मूँड सुजायो है
अब वाने थे मनवा दियो अर फूटा भाग खुला दियो
थांने राम चन्दर जी री आण चालो म्हारे आंगणिये...."
" जा छोरी ! गजनंदजी रे मिन्दर अर ओ परसाद चढ़ा दीजै, अर सुण! पाछो मत ल्याजे अर बाँटजे बी मत, बस चढ़ा र पाछी आ जाई जे"
बंटूडी कह्यो क "ठीक भइसा !" लिया लाडू साथ मे अर देवरे हाळी, चालता चालता बंटूडी ने लाड़ूवांरी बास आवा लागी, बंटूडी खाबा री आदत उ मजबूर ही पण लाड़ू भी गजानंद जी रा हा खाती भी तो कीकर? बंटूडी धरम संकट में आय गी अब खावे तो मरी नी खावे तो मरी । अब न्याव कीकर होवै? खूब बिचार आया गयां , पछे गेला में बंटूडी ऊभी ऊभी सोच करती रही जरे आखर में जार बीरी बुद्धि चाली, बंटूडी मन ई मन मे बोली " गजानंदजी रे तो आज बुधवार है जोकु नरा इज़ लाड़ू चढेला अगर में दो च्यार कम चढ़ा देवू तो भी गजानंद जी ने काईं ठा पड़ेला? ..... इयूँ करूँ क तीन लाड़ू खा जाउ ? ..." सोच र बंटूडी तीन लाड़ू खाय गी अर छिन्यो क टूकड़ो चौथा लाड़ू रो भी तोड़ खा गी अर बाकी देवरे में चढ़ाय दिया । पछे गरु, सुक्कर, सनी अर दीत च्यार दिन बीत्या, दीतवार की संज्या हुई बंटूडी अर बीरा भइसा - भुजाई तीनूं रोटी जीम र बैठा हा ढगलियो बंटूडी ने प्रेम से बोल्यो .... " छोरी बंटूडी! काळे सोमवार अर मावस दोन्यूं है थूं थारा मूँड ने बस में राख जे अर संझ्या पेलां कई बी मत गटजे अर म्हारी माने तो पाणी बी मत गटजे, .... बस एक दिन काढ़ दे लाली ! .... फेरु थारो ब्याव हो जाय तो आखी उमर खाती रहिजे.... म्हे अर थारी भुजाई दोनूं थारे हाथ जोड़ बिनती करा ।"
मां-बाप री आ प्रार्थना बापड़ी बंटूडी ने छींका अणा दी, लाण सोच में पड़ गी। "आखो दिन भूखी अर तिसाई....? कीकर......? म्हारो जीव रहई तो ब्याव री गुंजाइस होवेळा..... इयूँ करू क अंधारे पेली घर सु भाग ज्याउ..... ? "
बंटूडी तो आपरो निस्चय कर लियो , अब नी तो कोई बाबो आवे अर नी कोई ताळी बजे , बंटूडी नी तो घरे रुकेला अर नी कोई बंटूडी ने बरत की बोल सकेला। सोम री सुबा व्ही अर ढगलियो र किशनी चीन्चब करण ढूकिया " अरे रामजी ! आ डाकण कठे गी रे..... ? म्हारी जीवणी आंख फड़ फड़ कर री ही ..... आ छोरी आज पक्को बरत से बचबा खातर भाग गी" किशनी बोल र चुळ चुळ रोबा लागी ।
ढगलियो बोल्यो " डांवी आंख तो म्हारी भी फड़के ही..... पण बंटूडी री माँ थूं रोवे मती.... मीठू महाराज मिन्दर रे डागळा माथे बाजरी चुगता व्हेला ... इयूँ करां वणारी सरणे चालां...... छोरी कठे है अर काईं उपाय सु पाछी आ जावेळी अर नाई नाई केस कित्ता जुज्मान सब सामने आ जा व्हेला ..... मीठू महाराज तिरकाल देख सके है ।"
धणी लुगाई दोन्यूं बालाजी रे मिन्दर रे डागळे भाग्या। मीठू महाराज आज बाजरी कोणी चुगता हा बे तो आंख्या मीच धियान करता हा, ढगलियो अर किशनी मीठू महाराज रा पगां में लोटपलोट करण लाग्या।
मीठू महाराज आंख्या मीच्या मीच्या इज़ बोल्या तो दोनूं सांत होर सुण बा लाग्या । मीठू महाराज बोल्या ..... " वा रे ढगलिया ..... वा रे ढगलिया ... केड़ी बेटी जलमी थूं..... हाथ परायां पुन्न करावे ...... इयों कोनी बणे धरमी थूं...... तीन लाड़ू थारी बंटू गट गी अर एक लाड़ू इज़ चढ़ायो है..... गजानंद के बट पड़ ग्यो अर बी रो मूँड सूजायो है...... गणराजा के हाथ जोड़ केह बाबा लाड़ू खायो थूं ..... तीन नही जरे एक इज़ खायो फिर क्यूँ रीस में आयो थूं?...... ब्याव पछे थारे आठ चढ़ा दूँ ... अब तो किरपा राखे थूं.... मान गिया जदि गणराजा जरे सकल सुफलता माने थूं... नी मान्यो जरे बालाजी रे पांव पकड़ रो ज्याजे रे...... बालाजी थारा संकट हरसी मस्त होय घर ज्याजे रे.....।"
मीठू महाराज ने परनाम कर धणी लुगाई दोन्यूं गजानंद जी रे देवरे हाल्या , मिन्दर में जार दंडौत करि गणराज के पग पकड़यां नरा गीत गायां पाछे भी गजानंद जी नी टूट्या अर उल्टो मूंडो फेर किवाडं बन्द कर लियां। बापड़ा ढगलिया र किशनी रोता रिया अर मायने मिन्दर में गजानन जी ने दया आयी पण बंटूडी पर रीसा बळतां गणेशजी आडो नी खोल्यो, धणी लुगाई दोन्यूं बालाजी रे देवरे भाग्या अर बालाजी रे मिन्दर में प्रार्थना करी
".... चालो चालो जी बालाजी म्हारे आंगणिये...
संकट आयो खूब डरायो अब थे आर सहाय करो
गजननजी भी मान्या कोनी थे हिज़ कोई उपाय करो
थांके चणा गुड़ रो भोग लगाउ अर सरसो दीप जुपावूं
थे तो करो मेहर करतार चालो म्हारे आंगणिये
बंटूडी कळा करावे है अर बुढ्यो बाप रुलावे है
गजाननजी लाड़ू खायो है फेरु भी मूँड सुजायो है
अब वाने थे मनवा दियो अर फूटा भाग खुला दियो
थांने राम चन्दर जी री आण चालो म्हारे आंगणिये...."
भजन सुणता ही कड़कड़ाटां मेंळती ज्योत परगट व्ही चारूं म्हेर राम राम राम राम री धवनि होय गी , बावजी हणमान्जी परगट व्हिया, व्यारों रोम रोम राम राम सीताराम राम राम सीताराम रट रियो हो , ढगलियो र किशनी चित बावळा हुया सुट्ट व्हे गिया अर काईं नी बोल्या इत्ता में बालाजी बोल्या
"... वत्स! थे दोन्यूं रामजी री आण दी हो अर खूब काळजै रे जोर उ प्रार्थना करी हो जोकु थांकी पत राखणी पड़ेला, अब गजानन जी के लिए जोर तो में लगा देवूला पण थे लाड़ू चूरमो सब गजाननजी के इज़ चढाजो... म्हारे की नी इज़ चईजे। बस राम जी रो नाम लेवणो है म्हारे इत्ता में परसन्नता हो जावेळी। अब तक तो थारी बंटूडी भूखी इज़ घूम री है अब काई नी खा सकेला , म्हे गजाननजी ने पटा पटूर मेळ देवूला थांकी बंटूडी रे लारे , अब गणराजा बंटूडी रो बरत पूरण करावेला आ जिम्मेवारी म्हारी अब थे भजन करो....."
बोल बालाजी अंतर्धान हुया अर बंटूडी रा माँ-बाप भजन में लाग ग्या। बालाजी गणेश जी रे देवरे गिया बहुत मनायो जरे गणराजा मान्या अर बंटूडी रे लारे निक्सया। अठे हणमान्जी मन में बिचारयो क गणराजा फेरु रूस ग्या तो ? बंटूडी रा मां बाप ने दिया बचन री खातर बालाजी भी लुक र गणराजा के पाछे चाल्या। गेलै चालतां गणराजा मन मे बिचार कर्यो क इयूँ हणमान्जी रे किंया किंया काम करूला तर म्हारे कुण भगत बचेला ? सब हणमान्जी रे लारे व्हे जायेला , पण भेळके एक बिचार माथे बीजो बिचार करता गियां अर गणराजा हालता गियां।
घणो गहरो जंगल हो , चिड़कलियाँ बोलती ही अर ठंडी ठंडी लेहरा आ री ही गणराजा एक हाथी रो रूप बणा र मस्त होळा होळा चालता जा रह्या हा , गणराजा की मीचि मीचि आंख्या में ठंडी हवा घुस री ही लाड़ूवां सु दुम्भो भर्योडो हो वाने तो आबा लागि नीन्द अर गजानंदजी हुया आड़ा अर वठे इज़ रेतरड़ा में गिया सो। ठीक सामने एक रुखड़ा माथे बंटूडी भूखी अर तिसाई मरती कई कईं खाबा ने ढूंढ री ही अर बंटूडी ने सामने एक गूलर रो गुच्छो लाद ग्यो , अर भागी बंटूडी खाबा ने......।
अठे बालाजी तुरत एक बांदरा को रूप लियो अर सूतोड़ा गणराजा के एक मोटो सो के बम्बूल रो सूल लियो अर दियो चुभा, गणराजा सूतोड़ा जाग ग्या अर जोर से चिंघाड़या अर सामने देख्यो एक बांदरो वाने चिढा रियो हो । रीस में भर गजानंदजी बांदरा के लारे भाग्या , बांदरो बण्योड़ा बालाजी बंटूडी जिण रुखड़ा माथे ही विण रुखड़ा माथे इज़ झट उ चढ़ ग्या। गजानंदजी भारी हा रुखड़ा माथे क्यान चढ़ता जोकु रीसा बळतां रुखड़ा के दियो एक जोर रो भचीडो जो रुखड़ो ग्यो टूट अर जोड़े इज़ नंदी बहती वीण रे मायने गिर ग्यो अर हंडे हंडे बेहवा लाग्यो। बंटूडी रे हाथ आयो भोजन गम ग्यो , गिरता रुखड़ा में एक कोटर हो जिण मायने बंटूडी डर के मारया घुस गी । अठे बालाजी रुखड़ा माथे बैठा हा जोकु अंतर्धान हुया अर आपरे रामजी री सेवा में गिया परा , अर गणराजा भी रीसा बळतां घरे पधार ग्या।
बापड़ी बंटूडी रे पेट मे चटका चाल रह्या हा, पण करती भी काईं लाण पेट पकड़ बैठी ही अर बंटूडी ने कोटर में एक हरिया रंग रो लाड़ू दिख्यो तो बंटूडी आव देख्यो नी ताव कुतरबो हुई चालू अर पांच मिनट में तो सारा लाड़ू ने खाय गी। लेकिन बी लाड़ू रे मायने एक भाटा री गजानंदजी री मूर्ति निकली अर मूर्ति ने देखतां ही बंटूडी ने चढगी गैळ अर जरे गैळ टूटी जरे कोटर उ बारे निकली तो देक्यो रुखड़ो बेहवतो बेहवतो बंटूडी रे नीमड़ा के जड़े इज़ नंदी रे किनारे रुक ग्यो हो, रात होय गी ही अर बंटूडी घणी दोरी घरे गी तो बीरा माँ बाप देख र घणा राजी हुया।
किशनी बोली " अरे डाकण ! थूं कठे गई ही ? अठे थारे खातर म्हे लोग बरत पूजा री तैयारी कर राखी ही सगळी धूळ व्हे गी, अर पक्को थूं कठे काईं खा र आयी है ? हैं बोल? "
दोरी हुयी बंटूडी बोली " रे भुजाई! सुण तो खरी , आज काईं नी लादयो खाबा ने ...... भूखी मरी जो न्यारी .... अर सुण ! आज तो मरती मरती बच गी जो बोत हमझ"
" क्यूँ काईं हुयो " किशनीबाई पूछियो
बंटूडी आप री सगळी कथा केह सुणाई के कीकर वा सुबह हुता पेलां घर से भागी अर भूखी मरती जंगल मे गूलर रा फळ मूंडा में घाल इज़ री ही क एक हाथी रुखड़ा ने तोड़ र नंदी में बवा दीयो अर ज्यान त्यान बंटूडी कोटर में लुक र आपरे जीव री रक्षा करी। बाद में जार बंटूडी रा मां बाप बंटूडी ने बोल्या क बेटी अब थारो बरत खोल ले तो बंटूडी मना कर गी अर बोली क वीने अब भूख नी लाग री है अब वा नींद काढ़ी । अब तक सांत ढगलियो चुप नी रियो अर बोल्यो " छोरी बंटूडी! एक बात बताजे ?"
"पूछों भइसा" बंटूडी बोली
" थूं बिगर खायां अर सोयां आखो दिन क्यान काड्यो? .... अर अब थारे भूख भी नी है , आ कहाणी पूरी बताजे जो थारे साथ जंगल में बीती? अर थूं पक्को काई नी काई खायो जरूर है...... जो थूं गजनंदनी रा लाड़ू नी छोड्या जोकु जंगल में भूखी तो नी रेई होई।" ढगलाराम बोल र चुप हुयो।
" गजानंदजी रा लाड़ू री बात आप ने क्यान ठा पड़ी ? ..... " बंटूडी भारी इचरज में पड़ गी ।
" मीठू महाराज तिरकाल दरसी है व्हे खुद बतायो है.... गजानंदजी घणा रीसा बळता थारो बरत भंग कर्यो होई..... पण बालाजी खुद जिम्मेवारी ली ही जोकु म्हे दोन्यूं निसचिन्त हा...... अब काई बी मत लुकाजे ..... अर सच बोल्जे..."
" भइसा ! थे विस्वास करो में काईं नी खायो हूँ, हां कोटर रे मायने संझ्या होबा से पेलां मने नींद आ गी ही, .......... बाकी मने काईं ठा कोनी.... नींद उ जागी तर घरां आय गी.... बस.... " बंटूडी बोली।
अठे बंटूडी बोल र चुप हुई ही क बंटूडी रे मरोड़ चाल्या , लोटो लियो हाथ मे अर निबटबा भागी। किशनी अर ढग़ल दोन्यूं बिचार करबा लाग्या क बंटूडी काईं खायो नी तर लोटो लेर निबटबा क्यान गी? बे दोन्यूं सोच करता गियां , बंटूडी पाछी आयी पेट पकड़ बैठ गी, थोड़ी दूर हुई क बंटूडी पाछी लियां लोटो अर भागी निबटबा , इयूँ करता करता आधी रात बीत गी जरे जार बंटूडी री दस्त रुक गी। अब बंटूडी पड़ी गूदड़ी में अर सो गी। आखी रात किशनी अर ढगलियो दोन्यूं चिंता करता करता सो ग्या, जरे सुबा व्ही किशनी चाय बण्यार ल्याई ढगलिया रे अर बंटूडी ने जगायो , बंटूडी उठी अर ऊभी हुई तो देख र बंटूडी रा भइसा -भुजाई दोन्यूं चमक ग्या , वठे गूदड़ी सु बंटूडी री जग्या कोई दूबली पतली रुपाली कन्या ऊभी ही ।
" अरे बाई! थूं कुण है .......? ......म्हांकी बंटूडी कठे गी? अर थूं बंटूडी री जग्या काईं कर री है...? .......?.......?" बंटूडी रा माँ बाप बोल्या
" भइसा ! भुजाई! अरे ...... आंख्या खोल र देखों..... मैं बंटूडी इज़ हूँ...... गजानंदजी अर हणमान्जी री किरपा हुई है अर बी किरपा से महादेव जी टूठिया है..... आज रात का सपना में तीनू देव मने दरसन दिया है..... जरे रुखड़ो नंदी में पड्यो हो में कोटर में ही जरे मने एक हरया रंग रो लाड़ू लादयो हो...... वो म्हे खार सब भूल गी ही ..... बो लाड़ू नी हो ..... बा तो गजानंदजी री मूर्ति ही जिण रे ऊपर काई र फफूँद लग री ही जो म्हे खा गी
बी फफूँद उ म्हारे दस्त मरोड़ चाल ग्या अर में दूबली हो गी...... मूर्ति साफ होय गी जोकु गणेशजी भी राजी हो ग्या..... "
" अर वो बांदरो हणमान्जी अर वो हाथी गजानंदजी खुद इज़ हा.... "
बोल र बंटूडी चुप हुई।
किशनी ढगलियो दोन्यूं जाणा आपरी बंटूडी ने लिया मीठू महाराज के पास चाल्या , गेला में एक टीलोड़ा रो राजकुमार बंटूडी रे रूप माथे आसक्त हो गियो और बालाजी रे मिन्दर में ही बंटूडी से ब्याव कर लियो, मीठू महाराज आसिरवाद दियो फेरु सब मिल गणेश जी के आठ लाड़ू चढ़ाया अर हणमान्जी रे चूरमा गुड़ चणा रो भोग लगायो।
ई काहाणी ने सुणता पढ़ता अर हुंकारा भरता रे माथे गणराजा , हणमान्जी अर भोळानाथ टूठिया ज्यायी अर कथा सुण बाळा ने अरज़ है क़ आप आपरा टाबर ने लाड़ जरूर करो , लाड़ू भी खुवाओ पण टाबर ने बंटूडी री ज्यां लाड़ू मत बणाजो, बंटूडी री सहायता तो बालाजी कर दी ही अर गजानंदजी भी मान ग्या हा पण अब कलजुग है थोड़ो ध्यान राखजो
बोलो मीठू महाराज की जय
बोलो गजानंदजी जी महाराज की जय
बोलो बालाजी महाराज की जय
बोलो भोळानाथ भगवान की जय
"... वत्स! थे दोन्यूं रामजी री आण दी हो अर खूब काळजै रे जोर उ प्रार्थना करी हो जोकु थांकी पत राखणी पड़ेला, अब गजानन जी के लिए जोर तो में लगा देवूला पण थे लाड़ू चूरमो सब गजाननजी के इज़ चढाजो... म्हारे की नी इज़ चईजे। बस राम जी रो नाम लेवणो है म्हारे इत्ता में परसन्नता हो जावेळी। अब तक तो थारी बंटूडी भूखी इज़ घूम री है अब काई नी खा सकेला , म्हे गजाननजी ने पटा पटूर मेळ देवूला थांकी बंटूडी रे लारे , अब गणराजा बंटूडी रो बरत पूरण करावेला आ जिम्मेवारी म्हारी अब थे भजन करो....."
बोल बालाजी अंतर्धान हुया अर बंटूडी रा माँ-बाप भजन में लाग ग्या। बालाजी गणेश जी रे देवरे गिया बहुत मनायो जरे गणराजा मान्या अर बंटूडी रे लारे निक्सया। अठे हणमान्जी मन में बिचारयो क गणराजा फेरु रूस ग्या तो ? बंटूडी रा मां बाप ने दिया बचन री खातर बालाजी भी लुक र गणराजा के पाछे चाल्या। गेलै चालतां गणराजा मन मे बिचार कर्यो क इयूँ हणमान्जी रे किंया किंया काम करूला तर म्हारे कुण भगत बचेला ? सब हणमान्जी रे लारे व्हे जायेला , पण भेळके एक बिचार माथे बीजो बिचार करता गियां अर गणराजा हालता गियां।
घणो गहरो जंगल हो , चिड़कलियाँ बोलती ही अर ठंडी ठंडी लेहरा आ री ही गणराजा एक हाथी रो रूप बणा र मस्त होळा होळा चालता जा रह्या हा , गणराजा की मीचि मीचि आंख्या में ठंडी हवा घुस री ही लाड़ूवां सु दुम्भो भर्योडो हो वाने तो आबा लागि नीन्द अर गजानंदजी हुया आड़ा अर वठे इज़ रेतरड़ा में गिया सो। ठीक सामने एक रुखड़ा माथे बंटूडी भूखी अर तिसाई मरती कई कईं खाबा ने ढूंढ री ही अर बंटूडी ने सामने एक गूलर रो गुच्छो लाद ग्यो , अर भागी बंटूडी खाबा ने......।
अठे बालाजी तुरत एक बांदरा को रूप लियो अर सूतोड़ा गणराजा के एक मोटो सो के बम्बूल रो सूल लियो अर दियो चुभा, गणराजा सूतोड़ा जाग ग्या अर जोर से चिंघाड़या अर सामने देख्यो एक बांदरो वाने चिढा रियो हो । रीस में भर गजानंदजी बांदरा के लारे भाग्या , बांदरो बण्योड़ा बालाजी बंटूडी जिण रुखड़ा माथे ही विण रुखड़ा माथे इज़ झट उ चढ़ ग्या। गजानंदजी भारी हा रुखड़ा माथे क्यान चढ़ता जोकु रीसा बळतां रुखड़ा के दियो एक जोर रो भचीडो जो रुखड़ो ग्यो टूट अर जोड़े इज़ नंदी बहती वीण रे मायने गिर ग्यो अर हंडे हंडे बेहवा लाग्यो। बंटूडी रे हाथ आयो भोजन गम ग्यो , गिरता रुखड़ा में एक कोटर हो जिण मायने बंटूडी डर के मारया घुस गी । अठे बालाजी रुखड़ा माथे बैठा हा जोकु अंतर्धान हुया अर आपरे रामजी री सेवा में गिया परा , अर गणराजा भी रीसा बळतां घरे पधार ग्या।
बापड़ी बंटूडी रे पेट मे चटका चाल रह्या हा, पण करती भी काईं लाण पेट पकड़ बैठी ही अर बंटूडी ने कोटर में एक हरिया रंग रो लाड़ू दिख्यो तो बंटूडी आव देख्यो नी ताव कुतरबो हुई चालू अर पांच मिनट में तो सारा लाड़ू ने खाय गी। लेकिन बी लाड़ू रे मायने एक भाटा री गजानंदजी री मूर्ति निकली अर मूर्ति ने देखतां ही बंटूडी ने चढगी गैळ अर जरे गैळ टूटी जरे कोटर उ बारे निकली तो देक्यो रुखड़ो बेहवतो बेहवतो बंटूडी रे नीमड़ा के जड़े इज़ नंदी रे किनारे रुक ग्यो हो, रात होय गी ही अर बंटूडी घणी दोरी घरे गी तो बीरा माँ बाप देख र घणा राजी हुया।
किशनी बोली " अरे डाकण ! थूं कठे गई ही ? अठे थारे खातर म्हे लोग बरत पूजा री तैयारी कर राखी ही सगळी धूळ व्हे गी, अर पक्को थूं कठे काईं खा र आयी है ? हैं बोल? "
दोरी हुयी बंटूडी बोली " रे भुजाई! सुण तो खरी , आज काईं नी लादयो खाबा ने ...... भूखी मरी जो न्यारी .... अर सुण ! आज तो मरती मरती बच गी जो बोत हमझ"
" क्यूँ काईं हुयो " किशनीबाई पूछियो
बंटूडी आप री सगळी कथा केह सुणाई के कीकर वा सुबह हुता पेलां घर से भागी अर भूखी मरती जंगल मे गूलर रा फळ मूंडा में घाल इज़ री ही क एक हाथी रुखड़ा ने तोड़ र नंदी में बवा दीयो अर ज्यान त्यान बंटूडी कोटर में लुक र आपरे जीव री रक्षा करी। बाद में जार बंटूडी रा मां बाप बंटूडी ने बोल्या क बेटी अब थारो बरत खोल ले तो बंटूडी मना कर गी अर बोली क वीने अब भूख नी लाग री है अब वा नींद काढ़ी । अब तक सांत ढगलियो चुप नी रियो अर बोल्यो " छोरी बंटूडी! एक बात बताजे ?"
"पूछों भइसा" बंटूडी बोली
" थूं बिगर खायां अर सोयां आखो दिन क्यान काड्यो? .... अर अब थारे भूख भी नी है , आ कहाणी पूरी बताजे जो थारे साथ जंगल में बीती? अर थूं पक्को काई नी काई खायो जरूर है...... जो थूं गजनंदनी रा लाड़ू नी छोड्या जोकु जंगल में भूखी तो नी रेई होई।" ढगलाराम बोल र चुप हुयो।
" गजानंदजी रा लाड़ू री बात आप ने क्यान ठा पड़ी ? ..... " बंटूडी भारी इचरज में पड़ गी ।
" मीठू महाराज तिरकाल दरसी है व्हे खुद बतायो है.... गजानंदजी घणा रीसा बळता थारो बरत भंग कर्यो होई..... पण बालाजी खुद जिम्मेवारी ली ही जोकु म्हे दोन्यूं निसचिन्त हा...... अब काई बी मत लुकाजे ..... अर सच बोल्जे..."
" भइसा ! थे विस्वास करो में काईं नी खायो हूँ, हां कोटर रे मायने संझ्या होबा से पेलां मने नींद आ गी ही, .......... बाकी मने काईं ठा कोनी.... नींद उ जागी तर घरां आय गी.... बस.... " बंटूडी बोली।
अठे बंटूडी बोल र चुप हुई ही क बंटूडी रे मरोड़ चाल्या , लोटो लियो हाथ मे अर निबटबा भागी। किशनी अर ढग़ल दोन्यूं बिचार करबा लाग्या क बंटूडी काईं खायो नी तर लोटो लेर निबटबा क्यान गी? बे दोन्यूं सोच करता गियां , बंटूडी पाछी आयी पेट पकड़ बैठ गी, थोड़ी दूर हुई क बंटूडी पाछी लियां लोटो अर भागी निबटबा , इयूँ करता करता आधी रात बीत गी जरे जार बंटूडी री दस्त रुक गी। अब बंटूडी पड़ी गूदड़ी में अर सो गी। आखी रात किशनी अर ढगलियो दोन्यूं चिंता करता करता सो ग्या, जरे सुबा व्ही किशनी चाय बण्यार ल्याई ढगलिया रे अर बंटूडी ने जगायो , बंटूडी उठी अर ऊभी हुई तो देख र बंटूडी रा भइसा -भुजाई दोन्यूं चमक ग्या , वठे गूदड़ी सु बंटूडी री जग्या कोई दूबली पतली रुपाली कन्या ऊभी ही ।
" अरे बाई! थूं कुण है .......? ......म्हांकी बंटूडी कठे गी? अर थूं बंटूडी री जग्या काईं कर री है...? .......?.......?" बंटूडी रा माँ बाप बोल्या
" भइसा ! भुजाई! अरे ...... आंख्या खोल र देखों..... मैं बंटूडी इज़ हूँ...... गजानंदजी अर हणमान्जी री किरपा हुई है अर बी किरपा से महादेव जी टूठिया है..... आज रात का सपना में तीनू देव मने दरसन दिया है..... जरे रुखड़ो नंदी में पड्यो हो में कोटर में ही जरे मने एक हरया रंग रो लाड़ू लादयो हो...... वो म्हे खार सब भूल गी ही ..... बो लाड़ू नी हो ..... बा तो गजानंदजी री मूर्ति ही जिण रे ऊपर काई र फफूँद लग री ही जो म्हे खा गी
बी फफूँद उ म्हारे दस्त मरोड़ चाल ग्या अर में दूबली हो गी...... मूर्ति साफ होय गी जोकु गणेशजी भी राजी हो ग्या..... "
" अर वो बांदरो हणमान्जी अर वो हाथी गजानंदजी खुद इज़ हा.... "
बोल र बंटूडी चुप हुई।
किशनी ढगलियो दोन्यूं जाणा आपरी बंटूडी ने लिया मीठू महाराज के पास चाल्या , गेला में एक टीलोड़ा रो राजकुमार बंटूडी रे रूप माथे आसक्त हो गियो और बालाजी रे मिन्दर में ही बंटूडी से ब्याव कर लियो, मीठू महाराज आसिरवाद दियो फेरु सब मिल गणेश जी के आठ लाड़ू चढ़ाया अर हणमान्जी रे चूरमा गुड़ चणा रो भोग लगायो।
ई काहाणी ने सुणता पढ़ता अर हुंकारा भरता रे माथे गणराजा , हणमान्जी अर भोळानाथ टूठिया ज्यायी अर कथा सुण बाळा ने अरज़ है क़ आप आपरा टाबर ने लाड़ जरूर करो , लाड़ू भी खुवाओ पण टाबर ने बंटूडी री ज्यां लाड़ू मत बणाजो, बंटूडी री सहायता तो बालाजी कर दी ही अर गजानंदजी भी मान ग्या हा पण अब कलजुग है थोड़ो ध्यान राखजो
बोलो मीठू महाराज की जय
बोलो गजानंदजी जी महाराज की जय
बोलो बालाजी महाराज की जय
बोलो भोळानाथ भगवान की जय